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नारको टेस्ट असंवैधानिक - सुप्रीम कोर्ट

Posted on 05 May 2010 by admin

नई दिल्ली -  सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक अहम फैसले में कहा है कि जबरन नार्को टेस्ट, ब्रैन मैपिंग और पॉलिग्राफ टेस्ट मौलिक अधिकारों के हनन हैं और किसी शख्स से इजाजत लिए बिना उस पर ये टेस्ट नहीं किए जा सकते। कोर्ट ने यह भी कहा है कि नार्को टेस्ट, ब्रेन मैपिंग और पॉलिग्राफ टेस्ट के नतीजों को सबूत के रूप में अदालत के सामने पेश नहीं किया जा सकता।

मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन. न्यायमर्ति जे.एम. पंचाल और न्यायमूर्ति बी.एस. चौहान की खंडपीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा कि अभियुक्त की सहमति के बगैर नारको टेस्ट, ब्रेन मैपिंग या पॉलीग्राफी टेस्ट नहीं किया जा सकता। खंडपीठ की ओर से न्यायमूर्ति बालाकृष्णन ने फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी अभियुक्त का जबरन नारको टेस्ट उसके मानवाधिकारों एवं उसकी निजता के अधिकारों का उल्लंघन है।

कोर्ट ने यह फैसला संविधान की धारा 20(3)के तहत दी है, जिसमें कहा गया है कि किसी भी शख्स को खुद उसके ही खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी शख्स से इजाजत लेकर ऐसे टेस्ट किए भी जाते हैं, तो इसके नतीजे सबूत के तौर पर अदालत में पेश नहीं किए जा सकते। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर जांचकर्ता व्यक्ति की रजामंदी से इस तरह की तकनीक के जरिए कुछ हासिल करती हैं, तो इसका इस्तेमाल वह अपनी आगे की जांच में कर सकती हैं।

कोर्ट ने यह भी कहा कि पॉलिग्राफ टेस्ट करते समय जांच एजेंसियों को मानवाधिकार आयोग की गाइडलाइंस को कड़ाई के साथ पालन करना करना होगा।

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