नई दिल्ली - रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट का ड्राफ्ट जिसपर आयोग में आमसहमति बनी थी क्या उसे बदल दिया गया और इसके सदस्य सचिव श्रीमती आशा दास की जानकारी के बगैर ही दूसरी रिपोर्ट को छपने के लिए भेज दिया गया, यह प्रश्न राजधानी दिल्ली में भारत नीति प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित रंगनाथ मिश्रा आयोग के दुष्परिणाम विषय पर संगोष्ठी मे उठाया गया। संगोष्ठी की मुख्य वक्ता आशा दास से इसका स्पष्टीकरण मांगा गया श्रीमती दास ने अपने भाषण में कहा कि यह प्रश्न उन्हे असमंजस मे डाल दिया है। उनके अनुसार शुरु में आयोग के सदस्यों का सहयोग था बाद में लामबन्दी हो गई और बाद के अध्यायों मे जिन बातो पर सहमति बनी थी उसे बदल दिया गया। आयोग के ऊपर यह एक गम्भीर आरोप लगाया गया है, जो इसकी कार्य पद्धति पर प्रश्न खड़ा करता है। प्रतिष्ठान के मानद निदेशक प्रो. राकेश सिन्हा ने इस बात पर भी स्पष्टीकरण चाहा कि आयोग के अन्तिम बैठक में आशा दास को नहीं बुलाया गया और जो रिपोर्ट छपने के लिए गई उस पर उनके हस्ताक्षर नही थे।
रंगनाथ मिश्रा आयोग की सदस्य सचिव,आशा दास ने रिपोर्ट को संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन बताया। उन्होने साफ शब्दो में कहा कि अनुसुचित जातियों के सम्बन्ध में राष्ट्रपति के आदेश 1950 के अन्तर्गत दलित मुस्लिमों एवं दलित ईसाइयों को शामिल करना एक गलत कदम होगा। उन्होने बौद्धो एवं सिखो को इसके अन्तर्गत लाने को गलत करार दिया। आशा दास की यह बात उनके द्वारा अपनी आयोग की रिपोर्ट की असहमति पत्र में लिखी बात से भिन्न है। उसमे इसे उन्होने जायज ठहराया था। उन्होने कहा कि पहली गलती आगे की गलती का आधार नहीं हो सकता है।
उन्होने आरिफ मोहम्मद खान जो कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे उनकी यह तर्क कि इस्लाम में जाति प्रथा है का जोरदार खण्डन करते हुए कहा कि आयोग को मुस्लिम संगठनो एवं बुद्धिजीवियों से जो मेमोरेण्डम दिया गया उसमे मुस्लिमों में जातिवाद या छुआछूत नहीं होने की बात कही गई है। आशा दास ने कहा कि रिपोर्ट के प्रति असहमति जताना उनके अधिकार क्षेत्र मे था और ऐसा करना इसलिए जरुरी था कि आरम्भ में जो व्यापक मापदण्ड के आधार पर आयोग ने काम शुरु किया था उसकी बाद में तिलांजलि दे दी गई।
राजधानी के मालवीय मिसन सभागार मे रंगनाथ मिश्रा आयोग के दुष्परिणाम विषय पर संगोष्ठी मे मुख्य वक्ता के रूप मे पूर्व केन्द्रीय मन्त्री आरिफ मोहम्मद खान ने धर्म के आधार पर आरक्षण को पूरी तरह से असंवैधानिक एवं राष्ट्र विरोधी घोषित किया उनके अनुसार सभी प्रकार के अलगाववाद का विरोध किया जाना चाहिए। उनके मताअनुसार रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट देश को लखनऊ पैक्ट 1916 के समय में वापस ले जाना चाहता है। इसका किसी भी कीमत पर समर्थन नहीं किया जाना चाहिए।
संगोष्ठी की करते हुए अध्यझता विवेक साप्ताहिक (मुम्बई) के प्रधान संपादक श्री रमेश पतंगे ने कहा कि वर्तमान सरकार अल्पसंख्यकों का अल्पसंख्यकों द्वारा एवं अल्पसंख्यकों के लिए है। उन्होंने कहा कि रंगनाथ मिश्रा रिपोर्ट अनुसूचित जातियों के हिस्से को कथित अल्पसंख्यकों को भेंट चढ़ाना चाहती है। कार्यक्रम का संचालन प्रो. राकेश सिन्हा ने करते हुए कहा कि सच्चर कमेटी ने रंगनाथ मिश्रा कमीशन की पृष्ठभूमी तैयार की थी। वर्तमान राजनीति अल्पसंख्यक केन्द्रित होती जा रही है। उन्होंने प्रश्न किया कि रंगनाथ मिश्रा आयोग ने अल्पसंख्यक अवधारणा को परिभाषित करते समय न तो संविधान सभा की बहस को न ही प्रगतिशील मुस्लिम बुद्धिजीवियों यथा ए.ए.ए.फैजी, हुमायु कबीर, एम.एच.बेग, एम.आर ए.बेग, मोइन शकीर को क्यो नहीं उद्धृत किया है, सभा में बड़ी संख्या में शिक्षक, छात्र, राजनेता एवं पत्रकार उपस्थित थे। भारत नीति प्रतिष्ठान में इस विषय पर तीन ब्रेनस्टार्मिंग बैठके पहले हो चुकी हैं।
जितेन्द्र वझे
कार्यालय सचिव
भारत नीति प्रतिष्ठान