Archive | August, 2009

आयुर्वेद में अनुसंधान की संभावना

Posted on 30 August 2009 by admin

चित्रकूट- आरोग्यधाम के आयुर्वेद सदन में तीन दिवसीय जीएमपी प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू हुआ। अवधेश प्रताप सिंह विवि रीवां के कुलपति डा. शिवनारायण यादव ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया।

कुलपति ने जीएमपी प्रमाणीकरण के बारे में कहा कि प्रत्येक पौधा अपने मालिक को पहचानता है। इसको वैज्ञानिक आज सिद्ध कर रहे हैं जबकि हमारे पूर्वजों ने हजारों वर्ष पूर्व इसको बता दिया था। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा को सीखने के लिए विदेशी लालायित है। अकेले जर्मनी में संस्कृत को सीखने के लिए छात्रों की भारी भीड़ एकत्र होती है। विदेशियों का मानना है कि संस्कृत भाषा जानकर आयुर्वेद को ज्यादा अच्छी तरह समझा जा सकता है। भारत में आयुर्वेद के क्षेत्र में अभी भी बहुत अनुसंधान होने की संभावना है।

खुशीलाल शर्मा आयुर्वेद महाविद्यालय भोपाल के प्राचार्य डा. बी एम गुप्ता ने चित्रकूट में दीनदयाल शोध संस्थान के कार्यो की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि जीएमपी प्रशिक्षण कार्यक्रम चित्रकूट में होने से अलग अनुभव मिलेगा। यहां भगवान श्रीराम की तपोभूमि है, इसके अलावा औषधीय पौधों से लदे पड़े जंगल व पहाड़ भी है। भोपाल के डा. राजेश शर्मा ने कहा कि सभी को डीआरआई के कामों से सबक लेना चाहिये। उद्यमिता विद्यापीठ की निदेशक डा. नंदिता पाठक ने सामाजिक पुनर्रचना को विस्तार से समझाया। लखनऊ के राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक ए के एस रावत ने बताया कि आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण में सही औषधियों का प्रयोग नहीं हो रहा है। जिससे यह दवाएं प्रभावशाली नहीं होतीं। कुछ औषधियों में मिलावट भी की जा रही है। इसी संस्थान की वैज्ञानिक सैयदा खातून ने कहा कि प्राचीन ग्रंथ ऋगवेद में आयुर्वेद को विश्व की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति बताया गया है।

जन शिक्षण संस्थान के डा. रामलखन सिंह सिकरवार ने कहा कि आयुर्वेदिक औषधि के लिए पौधे की सही पहचान होना जरूरी है। इन पौधों का वानस्पतिक नाम भी सबको पता होना चाहिये। क्योंकि वानस्पतिक नाम पूरे विश्व में एक होता है। पूर्ण जानकारी के अभाव में आयुर्वेदिक औषधियों का उपयोग नुकसान दायक भी होता है। आयुर्वेद में एक हजार सात सौ औषधीय पौधों का उल्लेख है। इनमें 550 औषधीय पौधों का उपयोग ज्यादा होता है। प्रशिक्षण में आयुर्वेदिक औषधियों के उपयोग की अनिवार्यता के बारे में जानकारी दी गई। प्रशिक्षण में डा. मयंक शुक्ला, डा. विजय प्रताप सिंह व डा. विनय सहित देशभर से आये प्रतिनिधि मौजूद रहें।

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नरेगा की तर्ज पर एनआरएलएम बनेगी फ्लैगशिप योजना

Posted on 29 August 2009 by admin

नई दिल्ली-पहले कार्यकाल में शुरू हुई राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) के बल पर आम चुनाव में जोरदार कामयाबी हासिल करने के बाद यूपीए सरकार दूसरी पारी में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (नेशनल रूरल लाइवलीहुड मिशन, एनआरएलएम) लेकर आ रही है। एनआरएलएम के लिए सरकार 10,000 करोड़ से 15,000 करोड़ रुपए तक का कोष बनाने की तैयारी में है।

इस धन से गांवों में लोगों को आजीविका और स्वरोजगार के लिए बैंकों के जरिए सस्ता कर्ज दिलाया जाएगा। खास बात यह है कि मिशन में सिर्फ कर्ज ही नहीं दिलाया जाएगा, बल्कि कर्ज से शुरू होने वाले धंधे के लिए कच्चे माल और उसकी बिक्री के लिए बाजार भी सरकार ही उपलब्ध कराएगी। इस साल के अंत तक योजना शुरू कर दी जाएगी।

एनआरएलएम की विस्तृत कार्य योजना तैयार करने के लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने टास्क फोर्स का गठन कर दिया है। टास्क फोर्स में विजय महाजन, दीप जोशी, रंगू राव, इंफोसिस के मोहन दास पई और मिहिर शाह जैसे लोगों को शामिल किया गया है। टास्क फोर्स की पहली बैठक 31 अगस्त को होगी।

मिशन के बारे में योजना आयोग के सदस्य और टास्क फोर्स में काम कर रहे मिहिर शाह ने ईटी को बताया, ‘ग्रामीण स्तर पर लोगों को स्थायी आजीविका दिलाने के लिए सरकार एनआरएलएम लेकर आ रही है। इस मिशन का कुल बजट 10,000 करोड़ रुपए से 15,000 करोड़ रुपए के बीच होगा। योजना को इस साल के अंत तक अमल में लाया जाएगा।’

शाह ने कहा, ‘इस योजना का मकसद गांव के लोगों को स्वरोजगार के लिए सस्ता कर्ज उपलब्ध कराना और उनके उत्पादों के लिए बाजार उपलब्ध कराना है। अब तक का अनुभव यही रहा है कि बिना उचित आरएंडडी के दिया गया कर्ज गांव वालों के बहुत काम नहीं आ पाता। ऐसे में सरकार की भूमिका सिर्फ पैसा उपलब्ध कराने तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि उस पैसे से शुरू हुआ धंधा कामयाब हो पा रहा है या नहीं। यदि कामयाब नहीं है तो उसे सफल बनाने के लिए क्या काम जरूरी है। इसके लिए सरकार गैर सरकारी संगठनों की मदद भी लेगी। सरकार राष्ट्रीयकृत बैंकों के जरिए किसान और गांव वालों को इस काम के लिए माइक्रोफाइनेंस उपलब्ध कराएगी। सरकार की कोशिश है कि नरेगा से जो अस्थायी रोजगार मिल रहा है, उसे एनआरएलएम के जरिए स्थायी आजीविका में बदल दिया जाए।’ एनआरएलएम के तहत पशु पालन, मछली पालन, दुग्ध उत्पादन, कुक्कुट पालन या अन्य कुटीर उद्योंगों के लिए कर्ज उपलब्ध कराया जाएगा।

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2015 तक मुंबई व मालदीव हो जाएगा जलमग्न

Posted on 29 August 2009 by admin

वाराणसी- ग्लोबल वार्मिग के चलते होने वाले जलवायु परिवर्तन को नहीं रोका गया तो वर्ष 2015 तक मुंबई, मालदीव व बंगलादेश जलमग्न हो जाएगा। इसका प्रमुख कारण हिमालय के ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना है जिससे समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होगी और सागर किनारे के ये क्षेत्र पूर्णतया जलमग्न हो जाएंगे। हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने की गति अमेरिकी देशों की तुलना में तीन गुना अधिक है।

उक्त बातें शनिवार को बीएचयू के भौतिक विज्ञान विभाग में आयोजित ‘हाइड्रोजन ऊर्जा एवं जलवायु परिवर्तन’ विषयक संगोष्ठी में वैज्ञानिकों ने कही। मुख्य अतिथि अंतर्राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं मियामी स्वच्छ ऊर्जा केन्द्र के निदेशक प्रो. टीएन वेजरागुलू ने कहा कि जलवायु परिवर्तन को हाइड्रोजन ऊर्जा के प्रयोग से रोका जा सकता है। कहा कि जल से बना हाइड्रोजन बिजली बनाने या मोटर साइकिल, तिपहिया व कार आदि में प्रयोग के बाद पुन: पानी में बदल जाता है। वहीं यह कोयला व पेट्रोल की तरह कार्बन डाई ऑक्साइड जैसा ग्रीन हाउस गैस पैदा नहीं करता। कहा कि हाइड्रोजन ऊर्जा के क्षेत्र में हो रहे शोधकार्यो में अन्य विकसित देशों की तुलना में भारत में अधिक तेजी से कार्य हो रहा है। भारत को इसका लाभ उठाते हुए शोध तकनीक का विकास करना चाहिए और इसका अधिकाधिक प्रयोग अपने यहां करने के साथ ही इसे दूसरे देशों को निर्यात करना चाहिए।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. धीरेन्द्र पाल सिंह ने जलवायु परिवर्तन से होने वाले हानिकारक प्रभाव बढ़ता तापमान, वर्षा में कमी व कृषि के नुकसान आदि की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से जलपात के जीजीपी में 22 फीसदी का घाटा हो रहा है।

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बिहार के 50 गांवों में खुलेंगे ग्रामीण ज्ञान केंद्र

Posted on 29 August 2009 by admin

भारतीय वसंत कुमार,

पटना - नेशनल ई-गवर्नेस प्लान के तहत कपार्ट [लोक कार्यक्रम और ग्रामीण प्रौद्योगिकी विकास परिषद] बिहार में 50 नए ग्रामीण ज्ञान केंद्र [विलेज नालेज सेंटर] खोलेगा।

कपार्ट के सदस्य सचिव दीपांकर श्रीज्ञान के अनुसार मुजफ्फरपुर और वैशाली जिले के आधा दर्जन एनजीओ को पहले चरण में सोलह जगहों पर इसके संचालन की जिम्मेदारी दी गई है। ग्रामीण विकास मंत्रालय की योजना है कि सूबे के ग्रामीण क्षेत्र के लोग भी सूचना तकनीक का लाभ पाएं। अपने नेटवर्क के सहारे गांव के लोगों को सीधे वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जोड़ा जाएगा। मूल केंद्र वैशाली के बनिया में काम कर रहा है। यहां के सेंट्रल स्टूडियो को अपग्रेड किया गया है। चयनित गांव इसी केंद्र से जुड़ेंगे।

ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा खर्च की पूरी राशि एनजीओ संचालकों को दी जा रही है। वैशाली के गौरोल, लालगंज, राजापकाड़, पटेरी बेलसर, चेरा कल्याण, मुजफ्फरपुर के सरैया, साहेबगंज, पारू, हरदी आदि में केंद्र का संचालन शुरू किया जा रहा है।

वैशाली के बनिया में सेंट्रल स्टूडियो बनाया गया है। वीमैक्स, वीसेट, एसडीएन और लीज लाइन की सहायता से सेंट्रल स्टूडियो में बैठे विशेषज्ञ ग्रामीण ज्ञान केंद्र में आए लोगों से सीधी बातचीत करेंगे। जहां भी ग्रामीण ज्ञान केंद्र बनेगा, वहां एक हाल का निर्माण किया जाएगा, जिसमें उच्चतम तकनीक से युक्त एलसीडी मानिटर वीडियोकांफ्रेंसिंग स्क्रीन का काम करेंगे। विशेषज्ञ चिकित्सक या डाक्टर गांव में बैठे मरीज से लाइव बातचीत कर उन्हें कुपोषण से बचने के उपाय या फिर व्यवस्थित जीवन की अन्य बारीकियों को बता सकेंगे।

विलेज नालेज सेंटर, विज्ञान एवं तकनीकी मंत्रालय के साथ ग्रामीण विकास मंत्रालय की साझेदारी से बना कार्यक्रम है। कपार्ट ने एनजीओ के माध्यम से इसके संचालन की जिम्मेदारी ली है। मूल उद्देश्य गांव के लोगों को वे सूचनाएं मुहैया करानी है, जिनसे उनके जीवन और उद्यम का जुड़ाव है। साथ ही केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संचालित कार्यक्रम की जानकारी भी उन्हें विशेषज्ञ देंगे।

बिहार के ग्रामीण ज्ञान केंद्र के लिए जो विषय तय किये गये हैं, उनमें-पोषक तत्व के बारे में जानकारी, रेनवाटर हार्वेस्टिंग, ग्रामीण स्वच्छता, हेल्थ और हाइजिन, कौशल विकास, फल-सब्जी उत्पादन के गुर आदि को प्रमुखता दी गई है।

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समरस समाज निर्माण में जुटीं मुसहर महिलाएं

Posted on 29 August 2009 by admin

सुनील कुमार मिश्र,

झझारपुर- अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत अमेरिका देवी व तिलिया देवी ने चमत्कारिक काम कर विश्व पटल पर सुर्खियां पा ली हैं। इसके लिए दोनों को काफी संघर्ष करना पड़ा, लेकिन वे हार नहीं मानी। कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि नारी सशक्तीकरण की दिशा में दोनों ने गजब की मिसाल पेश की हैं।

तभी तो दोनों वर्ष 2004 में नेयॉन फाउंडेशन द्वारा वुमन ऑफ सब्सेंटस अवार्ड से सम्मानित और 2005 में नोबेल पुरस्कार के लिए नामित किया गया। इन दिनों वे महादलितों को शिक्षा सहित अन्य क्षेत्रों में जागरूक करने में जुटी हैं। झझारपुर अनुमंडल केलखनौर प्रखंड के खैरी गाव की मुसहर जाति की तिलिया देवी व सोहराय गाव की अमेरिका देवी को 07 जुलाई 2005 को नोबल पुरस्कार के लिए नामित किया गया था। तिलिया ने अपने गाव खैरी सहित लखनौर, बलिया, लेलिननगर, कमलदाहा मुसहरी, बेलौचा, निर्मला, उमरी आदि मुसहरी व अमेरिका ने अपने गाव सोहराय सहित मदनपुर खतवेटोल, गोट सोहराय सहित आसपास की मुसहर जातियों के घर-घर जाकर उन्हें जागरूक करना शुरू कर दिया। अमेरिका देवी ने कहा कि 360 परिवार वाले सोहराय गाव में 18 महिलाओं का स्वयं सहायता समूह बनाकर करीब 360 महिलाओं को हस्ताक्षर करना सिखाया।

अब ये अंगूठा छाप के कलंक से मुक्त हो गयी हैं। इन्हें आर्थिक रूप से बैंकों से जोड़ कर मजबूत भी किया गया है। इसी तरह तिलिया देवी ने भी 48 स्वयं सहायता समूहों का गठन कराकर 700 महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बना दिया है।

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विकास लिए सामाजिक सद्भाव जरूरी

Posted on 29 August 2009 by admin

नई दिल्ली - शहरों पर बढ़ते बोझ के बीच ही झुग्गी-झोपड़ी और स्लम बस्तियों में सुरक्षा की स्थिति पर चिंता जताते हुए केंद्रीय आवास व शहरी गरीबी उन्मूलन तथा पर्यटन मंत्री कुमारी शैलजा ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह किया है कि समाज में रहने वाले विभिन्न वर्गो के बीच सामंजस्य पैदा करने की कोशिश करें। उन्होंने कहा कि यह तभी होगा जब स्वस्थ और सुरक्षित नागरिक सुविधाओं से कोई वंचित न हो।

ओस्लो में ‘झुग्गी बस्तियों में सुरक्षा’ के विषय पर आयोजित सेमिनार में उन्होंने कहा कि भारत में इस बाबत हर प्रयास किया जाएगा। राजीव आवास योजना के जरिए भारत को स्लम मुक्त बनाने की जिम्मेदारी संभाल रहीं कुमारी शैलजा ने कहा कि पूरे विश्व में शहरों पर बोझ बढ़ रहा है। रोजगार की खोज में गरीब शहरों में आने को मजबूर हो रहे हैं, लेकिन उन्हें मूलभूत सुविधाएं भी मुहैया नहीं होती हैं। भारत के करीब 5000 शहरों में 22 प्रतिशत लोग स्लम बस्तियों में रहते हैं। वे जहां अपराधों के शिकार होते हैं, वहीं उन्हें उजड़ने का भी डर होता है। उन्होंने कहा कि शहरों के विकास के लिए सुरक्षा जरूरी है और यह तभी हो सकता है जब गरीबों के विकास पर भी ध्यान दिया जाए और सामाजिक सद्भाव पैदा करने की कोशिश हो।

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महिलाओं को पंचायतों में 50 फीसदी आरक्षण

Posted on 28 August 2009 by admin

नई दिल्ली - स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 22 साल पहले पंचायतों में जब महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया था, तब किसी ने नहीं सोचा होगा कि यह 50 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। लेकिन वह दिन आने वाला है। अब देश की पंचायतों की आधी सीटें आधी आबादी यानी महिलाओं से भरी जाएंगी।प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण बढ़ाने का मुद्दा उठाया था। इससे पहले 4 जून को संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने यह जिक्र छेड़ा था। उन्होंने कहा था कि महिलाओं को पंचायतों में 50 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने के लिए संविधान संशोधन किया जाएगा। अब केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव पार कर लिया गया है।

केंद्र सरकार ने पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण मौजूदा 33 फीसदी से बढ़ा कर 50 फीसदी करने का फैसला किया है। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 243 [डी] में संशोधन किया जाएगा। यह फैसला गुरुवार को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में किया गया।

बैठक का ब्यौरा देने आई सूचना व प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने पत्रकारों को बताया कि कैबिनेट ने संविधान के अनुच्छेद 243 [डी] को संशोधित करने के लिए विधेयक लाने का फैसला किया है। इसके बाद पंचायतों में सभी स्तरों पर महिलाओं के लिए मौजूदा एक-तिहाई आरक्षण बढ़ कर कम से कम 50 प्रतिशत हो जाएगा।

कैबिनेट के इस फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए सोनी ने कहा, ‘यह आरक्षण सीधे निर्वाचन से भरी जाने वाली कुल सीटों, पंचायत अध्यक्षों, और अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए आरक्षित पंचायत अध्यक्षों की सीटों पर लागू होगा।’ उन्होंने कहा कि पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण बढ़ाने से राजनीति में अधिक से अधिक महिलाएं आ सकेंगी। उन्होंने कहा कि महिलाओं के सशक्तीकरण से पंचायतें और अधिक सक्षम व कार्यशील बन सकेंगी। उनका प्रशासन सुधरेगा और सार्वजनिक सेवा की व्यवस्था में भी सुधार होगा। सोनी ने यह भी बताया कि कैबिनेट के इस प्रस्ताव के अमल से सरकार पर कोई वित्ताीय बोझ नहीं पड़ेगा। उन्होंने बताया कि शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित करने पर फैसला बाद में होगा।

पंचायतों में इस समय चुने हुए 28.1 लाख प्रतिनिधियों में से 36.87 फीसदी महिलाएं हैं। प्रस्तावित संविधान संशोधन के बाद पंचायतों में महिलाओं की संख्या 14 लाख से भी ज्यादा हो जाएगी। प्रस्तावित संविधान संशोधन के दायरे में नगालैंड, मेघालय, मिजोरम, असम के आदिवासी बहुल क्षेत्र, त्रिपुरा और मणिपुर के पहाड़ी इलाकों को छोड़ कर बाकी सभी राज्य और संघ शासित क्षेत्र आएंगे। अभी बिहार, उत्ताराखंड, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण लागू है। राजस्थान में अगले साल होने वाले पंचायत चुनावों में इसे लागू किया जाना है।

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NGO releases consumers’ manifesto

Posted on 28 August 2009 by admin

PUNE- With a view to highlight issues concerning the common man, Grahak Hitvardhini, a city-based NGO working for consumers’ rights, released a consumers’ manifesto on Wednesday. Copies of the manifesto has been sent to the city unit chiefs of all political parties.

Issues like rising prices of essential commodities, autorickshaw services and permitting private educational organisations to run civic schools, have been included in the manifesto.

“The decision to release the consumers’ manifesto was taken as the assembly elections are expected to be announced shortly. We have also organised a convention to discuss these issues. Leaders of all political parties will attend this convention,” Dnyanraj Sant, secretary of Grahak Hitvardhini, said at a news conference here on Wednesday.

The manifesto has demanded that prices of pulses should not be allowed to cross Rs 25 per kilo. “The government should create sufficient stock of foodgrains, pulses and sugar which would last till the next year’s kharif season,” the manifesto said.

The other demands are: including information related to quality of construction in the occupancy certificate, making bill payment system of MSEDCL more consumer-friendly and laying of underground electricity cables.

Sourse- The Times Of  India

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विकास योजनाओं का लाभ न पहुंचने पर नक्सलवाद हावी

Posted on 26 August 2009 by admin

जगदलपुर- कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने  कहा कि नक्सलवाद खत्म करने के लिए सरकारी योजनाओं को आम आदमी तक पहुंचाना होगा, क्योंकि ऐसा नहीं होने से पैदा शून्य की वजह से नक्सलवाद हावी होता है।

भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के कार्यक्रम में शामिल होने आए राहुल ने बस्तर जिले के मुख्यालय जगदलपुर में छात्र-छात्राओं के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि सरकारी योजनाओं का लाभ आम लोगों को मिलना चाहिए और सभी लोगों को योजनाओं का फायदा पहुंचाकर ही नक्सलवाद जैसी ताकतों को रोका जा सकता है।

उन्होंने कहा कि आंध्रप्रदेश में सरकारी योजनाएं आम आदमी तक पहुंच रही हैं इसीलिए वहां नक्सलवाद खत्म हो गया है लेकिन जहां ‘वैक्यूम’ होगा वहां नक्सलवाद हावी रहेगा।

राहुल ने कहा कि देश के प्रत्येक नागरिक की पहचान जाति-धर्म से न होकर एक हिंदुस्तानी के रूप में होनी चाहिए। देश के नागरिकों की सही पहचान बनाने के लिए यूनिवर्सल आई कार्ड बनाने का काम शुरू किया गया है, जो आगामी पांच वर्षों में पूरा कर लिया जाएगा। कांग्रेस महासचिव ने कहा कि आदिवासी और दलित लोग गरीबी की वजह से राजनीति में नहीं आ पा रहे हैं और यही कारण है कि आदिवासी क्षेत्रों का विकास नहीं हो रहा है। हम ऐसी प्रणाली विकसित कर रहे हैं जिससे उन्हें राजनीति में आने में मदद मिलेगी।

शिक्षा के अधिकार को लेकर एक छात्रा द्वारा पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि जहां स्कूल ही नहीं चलता वहां शिक्षा का अधिकार कैसे मिलेगा। हिंदुस्तान में 60 फीसदी लोग गरीब हैं। सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए लेकिन अगर सरकार गरीब जनता के लिए काम नहीं करेगी तो, विकास और अधिकार की बात करना बेकार है।

राहुल ने कहा कि इस समस्या के समाधान के लिए जरूरी है कि देश में ज्यादा से ज्यादा स्कूल, कालेज और विश्वविद्यालय खोले जाएं। इसके लिए सरकार के पास धन की कोई कमी नहीं हैं।

कांग्रेस महासचिव ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में निजी संस्थाएं भी सामने आ सकती हैं। जब तक शिक्षा मंदिरों की संख्या नहीं बढ़ेगी यह समस्या जारी रहेगी। राहुल ने भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के बारे में कहा कि इस संगठन को एक संगठित संस्था के रूप में ऊपर उठाना है, इसके लिए सदस्यों की संख्या बढ़ानी होगी और होने वाले चुनाव में अपनी भूमिका को निर्धारित करना होगा।

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उद्योग का सपना साकार कर रहीं गरीब महिलाएं

Posted on 26 August 2009 by admin

राजेश कुमार श्रीवास्तव

मुजफ्फरपुर-वे संख्या में ग्यारह हैं। अफसाना, शमीमा, तबस्सुम, गीता, कमली, सुजाता, रूपा कुमारी, नाजनीन, मंजू, रूबी व ज्योति। सात शादीशुदा और चार कुंवारी। सभी आर्थिक रूप से कमजोर हैं, पर अब उन्हें उद्योगपति के रूप में देखा जाने लगा है।

यूनिसेफ से तकनीकी प्रशिक्षण प्राप्त सभी ने एक स्वयं सहायता समूह [एसएचजी] का गठन किया है और गोशाला रोड स्थित बिहार महिला सामाख्या केंद्र में एक छोटी सी यूनिट खोलकर पिछले एक महीने से सेनेट्री नेपकिन बना रही हैं। उनकी छोटी सी यूनिट प्रतिदिन साठ पैकेट बनाती हैं। एक पैकेट में आठ नेपकिन होते हैं, जो गुणवत्ता के आधार पर बाजार में उपलब्ध किसी भी ब्रांडेड उत्पाद से कमजोर नहीं हैं। कीमत ब्रांडेड कंपनियों से काफी कम है।

गुलाब स्वयं सहायता समूह का यह उत्पाद ‘सहज सेनेट्री नेपकिन’ के नाम से बाजार में पहुंचने लगा है। प्रति पैकेट इस नेपकिन का मूल्य अभी 18 रुपये रखा गया है। इस ग्रुप की देखरेख कर रही सेनिटेशन रिसोर्स पर्सन कुमारी सिंट्टू का कहना था कि चकाचौंध वाले इस बाजारी युग में महिलाओं के लिए व्यवसाय करना आसान नहीं है। मगर हमारे हौसले बुलंद हैं।

समूह से जुड़ी सुजाता, रूपा कुमारी, नाजनीन, मंजू, रूबी आदि का कहना था कि अगर उन्हें प्रशासनिक सहयोग मिला तो उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ाने में उन्हें आसानी होगी। अभी उनका ग्रुप नेपकिन के निर्माण के साथ आर्थिक संकट को दूर करने का प्रयास कर रहा है।

उन्होंने बताया कि डीडीसी नईम अख्तर के साथ प्रकल्प के जिला समन्वयक रोहित कुमार समाख्या केंद्र पहुंचकर उनकी सराहना कर चुके हैं। डीडीसी ने वादा किया है कि जिले में संचालित अन्य स्वयं सहायता समूहों को इससे जोड़ा जाएगा और इस समूह को हर संभव सरकारी सहायता प्रदान की जायेगी।

बिहार महिला समाख्या की जिला समन्वयक पूनम ने बताया कि यूनिसेफ की पहल पर 20 महिलाओं को सेनेट्री नेपकिन बनाने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। इनमें से लगभग एक दर्जन महिलाओं ने गुलाब स्वयं सहायता समूह के तहत अपना काम शुरू कर दिया है। इनमें तीन रेडलाइट एरिया की रहने वाली हैं और वे अपना नया जीवन वृत शुरू करने के प्रति पूरी तरह जागरूक हैं।

केंद्र में उनकी नेपकिन बनाने की छोटी सी यूनिट को चलते अभी मात्र एक माह हुआ है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि यह समूह आने वाले दिनों में रोजगार की तलाश करने वालों के लिए पथ प्रदर्शक का काम करेगा।

स्रोत-दैनिक जागरण

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