Archive | विचार

God appears in children

Posted on 03 February 2013 by admin

At the ‘World Unity Satsang’ organized at CMS Gomti Nagar auditorium, renowned educationist and Founder-Director of City Montessori School, Dr Bharti Gandhi, a Baha’i follower said that God appears in children because children’s souls are pure. Dr Bharti Gandhi said that each child comes on earth with pious and clean heart and soul but its driftness with god increases as the child grows because of impurities prevalent in the society and it ultimately leads to its destruction. Therefore its the duty of all parents, teachers and responsible citizens of society to inculcate divine and sacred qualities in children and save their souls from getting impure and malice.
Earlier, the Satsang began with various educational cultural programmes presented by the students of CMS Asharfabad campus like world unity, peace, worship and love and spread the feeling of spiritual awareness among the audience present there. The inspirational bhajans, skit, group talk and all religion dance left the audience in bliss of religious unity and divine presence. In various events children showed that helping others give us true happiness. The students of CMS Asharfabad campus viz Anam Ishtiyaq, Saif Abbas, Arushi Saxena , Shazia etc. gave messages that unity should not be shattered even in adverse situations. Real safety and happiness rests in unity.
Speaking on the occasion, Mrs Archana Pandey, Principal, CMS Asharfabad said that we will be celebrating interfaith harmony week in our campus that will generate a religious harmony. Basic Shiksha Adhikari, Lucknow, Mrs Archana Yadav said on the occasion that moral education alone can make all round development in children which is the true purpose of education. I am highly inspired in this satsang and I will try to encourage moral education in other schools as well, she said. Speaking on the occasion, Baha’i follower Mrs B Mohajer said that your soul is your true identity which is gifted by God and we should keep on endeavouring to uplift our souls. Similarly, Mrs Ruma said that we should shun unnecessary things like hatred sadness and jealously behind and Mr Kailash Kesarwani said that children are angles. Others also spoke on the issue.

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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स्त्री-पुरुष की समानता से ही विश्व एकता कायम होगी

Posted on 26 August 2012 by admin

– डा. (श्रीमती) भारती गाँधी, प्रख्यात शिक्षाविद् व संस्थापिका-निदेशिका, सी.एम.एस.
स्त्री-पुरुष एक पंछी के दो पंख के समान हैं। दोनों को समान रूप से शक्तिशाली होना पड़ेगा तभी विश्व एकता का पंछी स्तन्त्र रूप से अपनी उड़ान भरेगा। यह विचार हैं सी.एम.एस. संस्थापिका-निदेशिका व बहाई अनुयायी डा. (श्रीमती) भारती गाँधी के, जो आज यहाँ सी.एम.एस. गोमती नगर आॅडिटोरियम में आयोजित विश्व एकता सत्संग में बोल रही थीं। आगे बोलते हुए डा. भारती गाँधी ने कहा कि अब समय आ गया है कि विज्ञान और धर्म एक साथ मिलकर मानवता का कल्याण करें। सभी देश स्वेच्छा से न्यूक्लियर बम न बनाकर न्यूक्लियर शक्ति का प्रयोग चिकित्सा, अंतरिक्ष शोध, शिक्षा व अन्य शान्तिपूर्ण कार्यो के लिए करें। हमें अपने बीच छोटे-छोटे झगड़े व मनमुटाव को भूलकर एकता की डोर में बंधना होगा। इससे पहले ‘विश्व एकता सत्संग’ का शुभारम्भ सुमधुर भजनों व गीतों से हुआ, जिनमें ‘प्रभु हम सबकी विमल बुद्धि होवे’, ‘छाप तिलक सब दीनी’, ‘मोसे नैना मिलाय के’, ‘इस जहाँ का सहारा मिले न मिले, मुझे तेरा सहारा सदा चाहिए’ इत्यादि भजनों ने आध्यात्मिकता का अनूठा अहसास कराया।
सत्संग में अपने विचार रखते हुए बहाई धर्म की अनुयायी श्रीमती बी मोहाजिर ने कहा कि सभी धर्मगुरुओं व अवतारों ने यही संदेश दिया है कि जब जब धरती पर अधर्म बढेगा, तब तब वे पुनः धरती पर आकर बुराई को मिटायेंगे व धर्म की संस्थापना करेंगे। प्रभु ईशु ने कहा ‘मैं वायदा करता हूँ कि वापस आऊँगा’, श्री कृष्ण ने भी कहा ‘मेरे जरिये ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है, मैं बार-बार आऊँगा’। लोग धर्म के नाम पर एक-दूसरे को मारते हैं व क्रूरता करते हैं जबकि धर्म तो प्रेम और शान्ति का संदेश देता है। शिक्षा को भी धर्म से जोड़ते हुए उन्होंने नैतिकता पर बल दिया जिसके बिना शिक्षा अधूरी है। मानवता का धर्म ही सच्चा धर्म है जो विश्व शान्ति ला सकता है। वरिष्ठ पत्रकार श्री वीर विक्रम बहादुर मिश्र ने कहा कि सकारात्मक दृष्टि ही सूत्र है विश्व एकता को जानने व समझने का। धर्म ही हमारे मन को नियन्त्रित करता है। आज धर्म का दुरुपयोग हो रहा है। हम मन को नहीं सुधारते। जब मन सुधरता है तभी धर्म का पालन होता है। इसी प्रकार कई विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किये।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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धर्म पालन से ही आत्मबल की प्राप्ति होती है — डा. (श्रीमती) भारती गाँधी, प्रख्यात शिक्षाविद् व संस्थापिका-निदेशिका, सी.एम.एस.

Posted on 19 August 2012 by admin

सिटी मोन्टेसरी स्कूल, गोमती नगर में आयोजित विश्व एकता संत्संग में आज विभिन्न धर्मानुयाईयों व प्रख्यात विद्वानों ने अपने सारगर्भित विचारों से धर्म के मर्म को उजाकर किया एवं अत्यन्त सरल शब्दों में जन मानस को धर्म पालन की प्रेरणा दी। सत्संग में विचार प्रवाह की शुरुआत करते हुए सिटी मोन्टेसरी स्कूल की संस्थापिका-निदेशिका व बहाई धर्मानुयायी डा. भारती गांधी ने कहा कि धर्म पालन से ही आत्मबल की प्राप्ति होती है और यही जीवन लक्ष्य को प्राप्त करने को सबसे सुगम तरीका है। अपनी बात को स्पष्ट करते हुए
डा. गाँधी ने कहा कि धारण करने को धर्म कहते हैं और अर्थात धर्म के बिना शांति संभव नहीं अर्थात एकता, उपकार, दया, करुणा आदि सद्गुणों को धारण करने वाला धार्मिक व्यक्ति है। दुनिया के सभी धर्म चाहे वह हिन्दू धर्म हो, मुस्लिम हो, ईसाई हो, सिख हो अथवा बहाई हो अथवा कुछ और, सभी प्राणी मात्र से प्रेम करने की सीख देते हैं और असत्य, द्वेष, वैमनस्तया आदि बुराईयों से दूर रहने की सीख देते हैं। एक उदाहरण देते हुए डा. गाँधी ने बताया कि मैंने एक विद्यालय खोला असहाय बच्चों के लिए और प्रधानाध्यापक नियुक्त किया किन्तु कुछ समय पश्चात उनकी दोनों आंखे चली गई और मैंने वो विद्यालय उन्हें दे दिया। सदा धर्म के मार्ग पर चलोगे तो जीवन में तुम फलो-फूलोगे।
सत्संग में अपने विचार रखते हुए आचार्य कृष्ण मोहन जी ने कहा कि जिस प्रकार शाकाहारी जानवर किसी भी परिस्थितियों में मांसाहार नहीं खाता और मांसाहारी जानवर कभी भी शाकाहारी भोजन नहीं खाता है, ठीक उसकी प्रकार सत्य, अहिंसा, एकता, शान्ति व सद्भाव का जीवन जीने वाला धार्मिक व्यक्ति कभी भी अधर्म के रास्ते पर नहीं जायेगा। इसी प्रकार श्री भरत यादव ने कहा कि ‘धर्म’ वास्तव में अत्यन्त सरल शब्द है परन्तु इसका अर्थ अत्यन्त व्यापक है। धर्म के 10 लक्षण हैं - ‘‘घृतिः, क्षमा, दमो अस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः। घीः विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम्।।’’ धर्म के सभी 10 दस गुण सभी धर्मों में विद्यमान हैं चाहे वह हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, बहाई आदि कोई भी धर्म है। श्री यादव ने कहा कि वास्तव में संसार के सभी धर्मों में जो तत्व है उनसे विश्वबन्धुत्व की भावना झलकती है चाहे हिन्दुओं का गायत्री मंत्र हो अथवा मुसलमानों की अजान, दोनों में सार तत्व एक ही है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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जेलों में यातनाऐं सहकर आजादी की दीप शिखा को जलाये रखा

Posted on 11 August 2012 by admin

उनकी तुरबत पर नहीं है एक भी दीया,
जिनके खूं से जलते है ये चिराग-ए-वतन।
जगमगा रहे हैं मकबरे उनके,
बेचा करते थे जो शहीदों के कफन।
परतन्त्रता की बेड़ीयों से मुक्त कराने के लिये बुन्देलखण्ड के रणबाकुरे स्वतंत्रता सेनानियों ने इन्दौर, इलाहाबाद, कानपुर, लाहौर और अण्डमान निकोबार द्वीप की जेलों में यातनाऐं सहकर आजादी की दीप शिखा को जलाये रखा। इन्दौर में होलकर के खिलाफ प्रजा मण्डल के माध्यम से जंग-ऐ-आजादी की लड़ार्इ ललितपुर जनपद के ननौरा ग्राम के निवासी पंडित बालकृष्ण अगिनहोत्री एवं उनके छोटे भार्इ प्रेम नारायण ने लड़ी तो पंडित परमानन्द ने राठ से चलकर अण्डमान की जेलों तक आजादी का बिगुल फूका लेकिन इन्ही सबके बीच एक सहयोगी की भूमिका निभाने वाला ललितपुर का परमानन्द मोदी जीवन के अनितम पड़ाव पर अपनी पहचान के लिये दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर है। स्वधीनता सेनानियों ने अपना खून पसीना बहाकर आजादी तो दिलार्इ लेकिन इस आजादी  ने स्वधीनता सेनानियों को ही भूला दिया। आजादी की लड़ार्इ में जिले के परमानंद स्वधीनता सेनानी का दर्जा तक नही दिया गया। उम्र के अनितम दौर पर पहुंच चुके स्वाधीनता सेनानी ने अंतत: हताश होकर राष्ट्रपति को मर्म स्पर्शी प्रार्थना पत्र भेजकर अपनी व्यथा को बताया है।
किराये के घर में रहकर आर्थिक तंगी के थपेड़े झेल रहे स्वधीनता सेनानी परमानंद मोदी की कड़क आवाज से अब भी उनके जोश का अंदाजा लग जाता है, लेकिन जिस आजादी की खातिर उन्होंने न्यौछावर कर दिया उस आजादी ने उन्हें स्वधीनता सेनानी तक का दर्जा नही दिया। गृह मंत्रालय के एक पत्र ने उनके सपनों को तार-तार कर दिया। वाकया पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर 1985 मेें विज्ञापित हुए एक विज्ञापन से जुड़ा है। जिसके द्वारा किन्ही कारणों से स्वधीनता संग्राम सेनानी होने का दर्जा पाने से वंचित करने का मौका दिया गया था। आवेदन की अंतिम तिथि 30 जून 1985 मुकर्रर की गयी थी। सेनानी ने अपना आवेदन 18 जून को ही रजिस्डर्ड डाक द्वारा भेज दिया था, जो गृह मंत्रालय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डिवीजन गृह मंत्रलाय में 25 जून को ही पहुंच गया था। इसके उपरांत भारत सरकार के सचिव ने पत्रांक नम्बर 32882455-एन 2 के माध्यम से बताया कि 28 जुलार्इ 85 को प्राप्त आवेदन पत्र में स्वधीनता संग्राम सेनानी की मान्यता का सपना झूलता रह गया। स्वधीनता सेनानी का तो यहां तक कहना है कि उनसे एक कार्यालय मेंं धन की मांग की गयी थी। पूरा कर पाने मंें असमर्थ रह पाने के चलते ही उनकी आखिरी ख्वाहिश अपूर्ण रह गयी।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी परमानंद मोदी पुत्र नंदलाल मोदी हाल निवासी सरदारपुरा ललितपुर किसी परिचय के मोहताज नही है। वह जिस उम्र में आजादी की लड़ार्इ में कूदे थे, उस उम्र मेंं बच्चे खेलने कूदने मेंं ही व्यस्त रहते है। मोदी ने पहले गांधी के आंदोलनों में काम किया, इसके बाद वह नेताजी सुभाष चंद बोस की आजादी हिंद फौज मेंं जुट गये। सन 1942 मेंं बनारस युनीवर्सिटी बंद हो गयी थी। वहां से गुलाबचंद ललितपुर मेंं आये थे। उन्होेंने आंदोलन को गति देने के उददेश्य से परमानंद मोदी को डाकखाना जलाने का काम सौंपा था। अलावा इंगलैण्ड में निर्मित कपड़े को बेचने वाले दुकानदार की दुकान में भी आग लगाने का काम मोदी ने किया था। जो भी दायित्व सौंपा गया वह एक पर एक दायित्व निभाते चले गये। रात मेंं पैम्फलेट छपवाने मेंें सहयोग के अलावा चिपकाने का कार्य भी परमानंद मोदी के जिम्मे था। मोदी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथगोला बनाकर कोतवाली ललितपुर पर फेका था। इस सम्बंध मेंं वह दो बार पकड़े गये। इतनी पिटार्इ हुर्इ कि वह बेहोश तक हो गये थे। बाद में वरिष्ठ साथियों के सुझाव के चलते वह एक वर्ष के लिए भूमिगत हो गये। लगातार जंगलों मेंं खाक छानते रहे, फिर भी आजादी का जज्बा नहीं गंवाया। वह आजादी के लिए स्वधीनता संग्राम सेनानियों तक संदेश पहुंचाने का कार्य करते रहे। 1942  में ही कमिश्नरी झांसी पर तिरंगा झण्डा चढ़ाने वाले सेनानी को अंग्रेजों ने गोली मार दी थी। इस गोली ने झण्डा फहराने वाले सेनानी को मौत की नीद सुला दिया था। वहीं छर्रे निकलकर परमानंद मोदी के बाये पैर मंें भी लगे थे। जिनके चिन्ह आज भी उनके पांव मेंं बने हुए है। उस समय चिकित्सालय मंें दाखिल होकर इलाज कराना सम्भव नहीं था। इस वजह से मोदी अपनी रिश्तेदारी मेंं भाग गये। देशी इलाज के द्वारा उनके पाव ठीक हुए परमानंद मोदी ने राष्ट्रपति को भेजे ज्ञापन मेंं बताया कि उन्होंने कभी भी सरकार के ऊपर अतिरिक्त बोझ रखने का निर्णय नहीं लिया। यही वजह है कि वह स्वधीनता संग्राम मेंं अहम भूमिका निभाते रहे। इसके बावजूद भी इस कार्य के बदले किसी किस्म का लाभ हासिल करना उन्होंने मुनासिब नही समझा। लेकिन जब 1985 मेंं विज्ञापन प्रकाशित हुआ तब मोदी को लगा कि उम्र के पड़ाव को देखते हुए आवेदन करना ही उचित है, लेकिन सरकारी मशीनरी की खराबी के चलते उनका आखिरी सपना भी टूटकर बिखर गया। हर जगह उन्हें अपने स्वधीनता संग्राम सेनानी होने की पहचान बतानी पड़ रही है।उनके पास केवल स्मृतियां व फिरंगियाें द्वारा शरीर दिये गये जख्म ही शेष रह गये है। इसके अलावा कुछ भी साथ नही है। परमानंद मोदी के पास आजादी हिंद फौज द्वारा जारी 15 अगस्त 1947 का वह सिक्का भी है जो केवल आजाद हिंद फौज के सिपाहियां को ही दिया गया था। इस सिक्के मेंं अविभाज्य भारत का नक्शा बना हुआ है। परमानंद मोदी को स्वधीनता सेनानी होने के किसी साक्ष्य की जरूरत नही है, लेकिन जिस तरह की जरूरतें सरकारी मशीन द्वारा बतायी जा रही है, उनकी सुन-सुनकर बूढ़े मन को काफी ठेस पहुंचती है। वह बोझिल मन से कहते है कि इस तरह के राज्य की तो उन्होेंने कल्पना तक नहीं की थी। जिस आजादी के लिए उन्हाेंने दिन रात भूखे प्यासे रहकर संघर्ष किया, उस आजादी ने उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहंुंचने के पश्चात भी ठुकराने का कार्य किया। वह बताते है कि स्वधीनता संग्राम से जुड़ी निशानियों को अपने साथ रखेंगे। मोदी के अधिकांश साथी दिवंगत हो चुके है, वह भी मोदी को स्वधीनता सेनानियों के समान दिलाने के लिए संघर्ष करते रहे, लेकिन कही से भी कोर्इ उम्मीद की किरण दिखायी नही पड़ी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बृजनंदन किलेदार, अहमद खां, बृजनंदन शर्मा, मथुरा प्रसाद वैध के अलावा हरीकृष्ण देवलिया ने भी मोदी के स्वधीनता संग्राम सेनानी होने का प्रमाण पत्र दिया है।
वक्त ने किये इतने सितम।
हमदम न रहे ।
बात करे तो किससे करें।
अपने ही जब हो बेरहम।।
एक आंख मोतियाबिंद के कारण कमजोर हो गयी है। सेनानी ने लिखा कि कमाना हिम्मत से बाहर है। भीख मांगना भी बस की बात नही है। उन्होंने बताया कि वह हर तरफ से निराश हो चुके है। पिछले एक माह से लगातार बीमार है। भोजन की व्यवस्था भी बड़ी मुशिकल से हो पाती है। इस हाल मेंं वह क्या करें, राष्ट्रपति ही सही मार्ग बताकर उनकी बोझिल बन चुकी जिदंगी को उम्मीद की किरणें दिखायें यह सोच-सोच कर अपने दिन काट रहे है।

-सुरेन्द्र अगिनहोत्री
ए-305, ओ.सी.आर. बिलिडंग
विधानसभा मार्ग, लखनऊ
मो0: 9415508695

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मनुष्य शरीर की दो प्रवृत्तियाँ हैं, एक अच्छी और दूसरी बुरी

Posted on 05 August 2012 by admin

– डा. (श्रीमती) भारती गाँधी, प्रख्यात शिक्षाविद् व संस्थापिका-निदेशिका, सी.एम.एस.
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, गोमती नगर में आयोजित ‘विश्व एकता सत्संग’ में अपने विचार रखते हुए  सिटी मोन्टेसरी स्कूल की संस्थापिका-निदेशिका व बहाई धर्मानुयायी डा. भारती गांधी ने कहा कि हर मनुष्य के अंदर दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ मौजूद हैं, एक अच्छी और दूसरी बुरी। यदि हम अच्छी प्रवृत्तियों को धारण कर अपनी आत्मा का विकास करें तो प्रभु की नजदीकी प्राप्त कर सकते हैं और इसी प्रकार बुरी प्रवत्तियों को धारण कर प्रभु से दूर होते जाते हैं। जीवन का लक्ष्य अच्छी वृत्तियों को धारण कर, अपनी आत्मा का विकास कर प्रभु की कृपा प्राप्त करना है परन्तु यह तभी हो सकता है जब हम प्रभु द्वारा भेजे गये इस युग के अवतारों से अपने आपको जोड़ें। प्रेरक अच्छे होंगे तो हमें सद्ज्ञान प्राप्त होगा। इसलिए सद्गुरू का होना आवयक है - राम, कृष्ण, मोहम्मद, गुरू नानक, बहाउल्लाह आदि हमारे सद्गुरू ही हैं जो हमारी आत्मा में आस्था, भक्ति भाव, परोपकार, त्याग आदि गुणों को समावेशित कर हमें महात्मा बनाते हैं अर्थात हमारी आत्मा को महान बना देते हैं।
सत्संग में अपने विचार रखते हुए श्री आब्दी ने कहा कि जिन लोगों की करनी व कथनी में फर्क होता है उनमें डुअल पर्सनालिटी विकसित हो जाती है। सच्चा वह है जो अपने कर्म से सच्चा हो। आजकल हम लोग बड़े-बड़े वायदें करते हैं लेकिन उस पर चलते नहीं। सबसे बड़ा अधर्मी ही आज दिन भर धर्म की बातें करता है। यह डुअल नेचर है। हम धर्म को वैज्ञानिक स्वरूप नहीं दे पायें हैं। यह समझना जरूरी है कि धर्म से विज्ञान है, विज्ञान से धर्म नहीं।
श्री यू.बी. सिंह कहा कि सद्गुण अवगुण के कारण ही कोई हीरा है तो तो कोई पत्थर है। एक बार पार्वती ने शंकर से पूछा आप किसकी उपासना करते हैं तो उन्होंने विस्तार से जवाब दिया कि ब्रहमविद्या ही असली विद्या है और आत्मज्ञान ही असली ज्ञान है। सबसे सूक्ष्म रूप ही सबसे प्रभावशाली है। श्री यू.के. त्रिपाठी ने कहा कि शरीर की आवश्यकताएं भौतिक होती है और यही पापों का कारण है। किन्तु हमें अपनी आत्मा की आवश्यकताओं पर भी ध्यान देना चाहिए। यदि हम अपने को आत्मा मानें तो हमारा कार्य भी बदल जाता है। आइये हम सद्गुरू की तलाश करें और आत्मा की पुकार को सुनें व उसकी संतुष्टि के लिए कार्य करें। इसी प्रकार कई अन्य वक्ताओं ने भी अपने सारगर्भित विचार व्यक्त किए। अन्त में सत्संग का समापन सुमधुर भजनों से हुआ, जिसनें सभी को आध्यात्मिक चेतना से अभिभूत कर दिया।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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15 मई - अन्तर्राष्ट्रीय परिवार दिवस पर विशेष टूटते सयुँक्त परिवार, राह भटकते बच्चे! जिम्मेदार कौन? - हरि ओम शर्मा

Posted on 10 May 2012 by admin

संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, बच्चे राह भटक रहे हैं, इतने पर भी माता-पिता की आँखे नहीं खुल रही है। नादान बच्चे संस्कारों के अभाव में राह भटक रहे हैं। आखिर कौन देंगे इनको संस्कार? कौन दिखायेगा इनको रास्ता? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? ‘दादा-दादी’, ‘माता-पिता’ या स्वयं बच्चे? आज यह एक ऐसा अहम मुद्दा है कि इस विषय पर चर्चा-परिचर्चा होनी अतिआवश्यक है। किन्तु दुख की बात यह है कि इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है और न ही इस विषय को कोई गम्भीरता से ले रहा है। क्या वास्तव में संयुक्त परिवारों की उपयोगिता समाप्त हो गई है? क्या वास्तव में माता-पिता को राह भटकते बच्चे दिखाई नहीं दे रहे हैं? क्या वास्तव में दादा-दादी, नाना-नानी, नाती-नातियों व पोते-पोतियों के साथ रहना पसन्द नहीं करते हैं? यदि ऐसा नही है तो फिर संयुक्त परिवार क्यों टूट रहे हैं? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? ‘दादा-दादी’, ‘माता-पिता’ या स्वयं बच्चे? क्योंकि बच्चे तो बेचारे असहाय हैं, अज्ञानी हैं, अबोध हैं, जब कोई सही राह नहीं दिखाई देगी तो यह नादान बच्चे तो राह भटक ही जायेंगे। इसमें इन बेचारों का क्या दोष है। पानी के अभाव में पौधा सूख जाये तो अपराध तो माली का है, पौधे का क्या अपराध? बालक भी एक पौधे की तरह है, प्यार दुलार के अभाव में उसका राह भटकना स्वाभाविक है। पहले बच्चा अपने दादा-दादी की गोद में पलता-पोसता था, आज ‘आया’ की गोद में पल रहा है। ज्यादातर बच्चे ‘क्रेंच’ में पल रहे हैं जो किसी एक जेलखाने से कम नहीं है। ‘दादा-दादी’, ‘नाना-नानी’ की गोद में बैठकर परियों की कहानी, त्याग, तपस्या, ईमानदारी की कहानी, राजा हरिश्चन्द्र, राजा मोरध्वज व भक्त श्रवण कुमार की कहानियाँ सुनने वाला बालक आज टी0वी0 पर अर्धनग्न बालाओं की तस्वीरों, दिशाभ्रमित व गुमराह करने वाले गंदगी से भरे, फूहड़ सीरियलों को देख रहा है तो बालक जैसा देखेगा, वैसा ही बनेगा। कुल मिलाकर तथा सब मिलकर बालक का दोहन ही तो कर रहे हैं, उसके कोमल मन-मस्तिष्क में मार-धाड़, अपराध व सेक्स ही तो भर रहे हैं, तो बालक तो राह भटकेगा ही! ‘बोये पेड़ बबूल के तो आम कहाँ से खाय’, जैसा बोओगे वैसा ही तो काटोगे! जब बच्चा राह भटक कर आगे बढ़ जाता है और वह इतनी दूर निकल जाता है कि फिर वहाँ से उसका लौट पाना असम्भव होता है, तब सभी मिलकर बालक का दोष देते हैं।
मैने कई ऐसे ‘दादा-दादी’ व ‘नाना-नानी’ से बातचीत की जिनकी औलादें बहुत ही ऊँचे पदों पर पदासीन है किन्तु वह अकेले ही रह रहे हैं। इन सबकी समस्याये अलग-अलग हैं। किसी की औलादे अपने साथ रखना पसन्द नहीं करती है तो कोई अपमान जनक व्यवहार के कारण रहना पसन्द नहीं करते हैं। एक ‘क महोदय’ बुजुर्ग दम्पति की बात सुनकर मैं चैंक गया। बड़े ही गुस्से में बोले यह नालायक औलाद हम दोनों को जीते जी ही अलग-अलग करना चाहते है। कहते हैं मम्मी मेरे साथ रहेगी और पिताजी बड़े भइया के साथ रहेंगे! मैंने कह दिया, चले जाओ यहाँ से, हम दोनों को कोई भी जीते जी अलग नहीं कर सकता है। हम दुख-सुख सह लेंगे लेकिन रहेंगे साथ-साथ। इनकी बात सुनकर मैं ‘श्रीमान ख महोदय’ के पास पहुँचा, उनसे बात हुई तो उनकी इनसे भी गंभीर समस्या है। कहते हैं मेरी पत्नी का तो स्वर्गवास हो गया है। मेरे तीन बेटे हैं और तीनों ही बड़े अधिकारी हैं। तीनों चार-चार महीने बाँटकर अपने-अपने पास रखते हैं। समय पूरा होने पर ड्राइवर द्वारा दूसरे भाई के घर भिजवा देते हैं। बस इसी तरह वर्ष पूरा हो जाता है। अब मरने की घडि़याँ गिन रहा हूँ। इन महोदय से मिलकर जब मैं ‘ग महोदय’ से मिलने आगे बढ़ा तो इन बुजुर्ग दम्पत्ति से बातचीत हुई तो कहने लगे भइया कहाँ जायें, बेटे के पास छोटी सी नौकरी है, दो कमरे का मकान है, कहाँ हमको रखे और कहाँ खुद रहे। सो हम भार नहीं बनना चाहते हैं किसी के ऊपर! और फिर यहाँ भी तो एक घोसला (मकान) बनवा लिया है इसकी देख-रेख कौन करे। उनके यह सात्विक विचार सुनकर आगे बढ़ा तो सामने से ‘घ महोदय’ आते हुए दिखाई दिये। कुशल-क्षेम पूछने के बाद जब मैंने कहा कि आप तो अपने बेटे के पास गये थे, वापस क्यों आ गये? इतना सुनते ही तपाक से बोले भइया हम कोई कैदी तो हैं नहीं कि खाना खा लिया औरपड़े रहें बंद काल कोठरी में। न कहीं जा सकते हैं, न कहीं आ सकते हैं, यहाँ न बैठो, वहाँ न बैठो, इससे बात न करो, उनसे बात न करो। हद तो तब हो गई जब बहू ने बच्चों से बात करने पर भी रोक लगा दी। अब तुम्हीं बताओ क्या जरूरत है वहाँ हमारी? हम तो रहेंगे स्वछन्द, पूर्ण स्वतंत्रता के साथ विचरण करेंगे। श्रीमान घ महोदय की कहानी सुनकर आगे बढ़ा ही था कि ‘च महोदय’ से मुलाकात हो गई। शिक्षा विभाग से रिटायर हुए हैं। यह पूछने पर कि आप बच्चों के साथ क्यों नहीं रहते हैं, बोले, बच्चों को हमारे शरीर से गंध आती है। आने जाने वाले मेहमानों से मिलवाने में डरते हैं। सोचते हैं कि मिलवा देंगे तो उनकी शान में बट्टा लग जायेगा। इसी डर से घर के पिछवाड़े एक कमरा दिया था रहने के लिए। ऐसी अपमानजनक स्थिति से भूखों मरना ही अच्छा है।
लगभग सभी बुजुर्गो की यही आत्म कथायें है। इसमें इनका दोष कम और इनकी औलादों का दोष अधिक नजर आ रहा है। काश! इनकी औलाद यह समझ पाती कि माता-पिता के साथ रखने से दो पीढि़यों का कल्याण होता है। एक तो अपना जीवन सँभलता है, दूसरे बच्चों का जीवन सँभलता है। घर में माता-पिता की मौजूदगी मात्र से ही सब बला टल जाती है। आइये! दूसरे पक्ष का भी मन टटोले कि आखिर खामी है कहाँ?
इन बच्चों के माता-पिता की अपनी समस्याये हैं। इनमें से कुछ का कहना है कि हम तो अपने माता-पिता को साथ रखना चाहते हैं किन्तु वह खुद ही रहना नहीं चाहते हैं, रूढिवादी हैं, अपना घर छोड़ने को तैयार नही है। कुछ माता-पिता का कहना है कि देखिये शर्मा जी हम भी बाल बच्चेदार है, हम पल्लू से बंधकर तो नहीं रह सकते हैं, अपने माता-पिता के। आखिर हमारी भी तो कोई जिम्मेदारी है हम पहले बच्चों को देखें या उनको देखें! वह यहाँ आ जायें, रहे आराम सेे, हमें तो कोई परेशानी नही है। हाँ एक बात अवश्य है कि उनकी टोका-टाकी अब अच्छी नहीं लगती है और चुपचाप वह रह नहीं सकते हैं इसलिए हमारी उनसे पटरी नही खाती है। दूसरे माता-पिता दम्पति से जब उनसे इस विषय पर बातचीत की तो उन्होंने बताया कि शर्मा जी हम दोनों पति-पत्नी नौकरी करते हैं। बच्चे स्कूल चले जाते हैं अब हम माता-पिता की अधिक सेवा तो नहीं कर सकते हैं। अब जब वह यहाँ रहते हैं तो फिर अकेला ही उन्हें रहना पड़ेगा। अब मैं पहुँचा एक अन्य परिवार में जहाँ बेटों का अपने पूज्य पिताजी के साथ मल्लयुद्ध चल रहा था साथ ही गालियों का वाकयुद्ध भी चल रहा था। मैं दंग रह गया पिता पुत्र का यह महाभारत देखकर! इन बुजुर्ग दम्पति के दो बेटे हैं। दोनों ही बेटे उसी घर में अलग-अलग रहते हैं, किन्तु अलग-अलग कमरों में! एक दूसरे से बोलचाल भी नहीं है। अक्सर घर में झगड़ा होता रहता है। सो आज घर में कलह पिता की पेंशन के लिए हो रही है। दोनों ही पिता की पेंशन लेना चाहते हैं, पिता की दाल रोटी की किसी को चिन्ता नहीं है। पेंशन की चिन्ता दोनों को है। अब ऐसे संयुक्त परिवार होने से क्या लाभ! दो बड़ों की लड़ाई में पिसता है बच्चे का भविष्य। माता-पिता को इतनी भी चिन्ता नहीं है कि आज जो व्यवहार हम अपने माता-पिता के साथ कर रहे हैं, कल हमारे बच्चे भी हमारे साथ यही व्यवहार करेंगे तब क्या होगा? तब वही होगा जो आप कर रहे हैं। क्या यह स्थिति ठीक रहेगी? दूसरे आज जो आपके बच्चे राह भटक रहे हैं, संस्कार हीन बन रहे हैं, दिशाभ्रमित हो रहे हैं क्या वह ठीक है?
आज आधुनिक ‘माता-पिता’ इस भौतिकतावादी संस्कृति में ऐसे रम गये हैं कि न तो इनको पूर्व पीढ़ी की चिन्ता है और न ही अपनी भावी पीढ़ी की चिन्ता है। एक पीढ़ी इनके बदलते व्यवहार से व्यथित है तो दूसरी पीढ़ी एकाकी जीवन की पीड़ा से ‘सिसक’ रही है। दोनों ही पीढ़ी के साथ आप अन्याय कर रहे हैं। इस नमक, तेल, लकड़ी के नाम पर दिन रात दौड़ रहे हैं। एक नही, दोनों माता-पिता दौड़ रहे हैं। इनको न तो अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्य याद रह गये हैं और न ही अपने बच्चों के प्रति कर्तव्य याद रह गये हैं। बस अच्छे स्कूल में एडमीशन, ट्यूटर, रिक्शा, बस की व्यवस्था, घर में टी0वी0 और फ्रिज का प्रबन्ध कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ रहे हैं। न इनके पास अपने माता-पिता से बातचीत का समय है और न ही अपने बच्चों से बातचीत का समय है। यह स्थिति ठीक नहीं है। अतः अभी भी समय है, चेत जाइये, जग जाइये! अपने माता-पिता को अपने साथ रखिये। खूब मन से उनकी सेवा करिये। फिर आप देखेंगे कि वही माता-पिता जिन्हें आप ‘रूढिवादी मानसिकता’ का व बेकार समझ बैठे हैं, आपके लिए सबसे अधिक उपयोगी सिद्ध होंगे। जब यह आपको पढ़ा-लिखाकर, पाल-पोसकर बड़ा कर सकते हैं तो फिर आपके बच्चों को क्यों नहीं कर सकते हैं? आप माता-पिता को साथ रखकर उनकी सेवा करके तो देखिये, आपकी तीनों पीढ़ी सुखी हो जायेगी। आपके ‘माता-पिता’ सुखी रहेंगे, साथ ही आप जो तनाव में जी रहे हैं, तनावमुक्त हो जायेंगे व सुखी हो जायेंगे साथ ही आपके बच्चे राह भटकने से बच जायेंगे और सही रास्ते पर चलकर आपका नाम रोशन करेंगे। इससे भावी पीढ़ी भी सुखी हो जायेगी। तो फिर आप अभी भी क्या सोच रहे हैं? देरी क्यों कर रहे हैं, अपनी खातिर न सही तो भावी पीढ़ी की खातिर, संयुक्त परिवार की महत्ता को समझिये। प्लीज! बचा लीजिए अपने मासूम बच्चों के भविष्य को! अन्यथा राह तो वह भटक ही गये हैं उसमें आपको कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है।

ho-sharma
(हरि ओम शर्मा)
12, स्टेशन रोड, लखनऊ
फोन नं0: 0522-2638324
मोबाइल: 9415015045, 9839012365

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Request for conducting IIT Entrance and IIM Entrance examinations in Hindi and other important regional languages as well

Posted on 04 May 2012 by admin

To,
The Secretary,
Ministry of Human Resource Management,
Government of India,
New Delhi

Subject- Request for conducting IIT Entrance and IIM Entrance examinations in Hindi and other important regional languages as well
Sir,
We, Amitabh Thakur, an IPS officer of UP Cadre (1992 batch) but I am writing this letter in my personal capacity as a part of my social concerns.

I have been a student of IIT Kanpur (B Tech in Mechanical Engineering- 1989 pass out) and am presently undertaking the Fellow Program in Management (FPM) from IIM Lucknow in Human Resource Management.

We all know that the various IITs and the IIMs, as the premier technical and managerial institutions of India, are the creation of the Government of India, though they have also been granted a reasonable autonomy to perform their assigned duties more professionally and efficiently. Thus, the best way of describe these IITs and IIMs would be to call them autonomous Institutions with a reasonable and necessary government control.

On the basis of the autonomy vested on the IITs and IIMs, they conduct their entrance examinations on their own, through a mutually accepted and agreed method. The entrance test for the IITs is called IIT Joint Entrance Examination (IITJEE) and for the IIMs is called the Common Admission Test (CAT). These examinations are conducted by the IITs and the IIMs themselves through a well evolved mechanism and methodology. Yet, it would not be out of place that these Institutions are not immune or averse or contrary to the various Government Policies and the laws of the land.

IITJEE is presently conducted in two languages- English and Hindi while CAT is conducted in English only. But we know that there are many important regional languages in India which are spoken by many million people. As per the 2001 census, Assamese (13 million), Bengali (83 million), Gujarati (46 million), Hindi (around 300 million), Kannada (38 million), Malayalam (33 million), Marathi (72 million), Oriya (33 million), Panjabi (29 million), Tamil (61 million) and Telugu (72) and Urdu (52 million) are some such languages which have a language-speaking population of more than 10 million each. In such circumstances, it seems only natural and logical that these languages are not ignored in technical and mangerial education. We also agree that the primary aim and goal of creating the IITs and IIMs has not been to act as a feeder cadre to the multi-nationals and the foreign firms but to act as the agents of change in India. In such circumstances, if the students having a learning and understanding in local/regional languages also get a share of participation in the entrance process in the IITs and IIMs, that will prove beneficial in the following ways-
1.    It will remove the present handicap assigned to the students who study in the regional languages, including Hindi
2.    It will inject such candidates who are closer to the Indian soil and the Indian language in larger number in both the IITs and IIMs
3.    It will certainly help boost the regional languages, including Hindi so as to give them a higher sense of purpose and more confidence in themselves
4.    It will end the present discrimination being meted out to the students studying in regional language and Hindi
5.    It will help increase the sense of Indian-ness in its totality
6.    It will end the perceived superiority of English language over the various Indian languages that has been artificially created without any sound reasoning

It needs to be stated here that IITJEE exam was initially conducted only in English but later a decision was made to conduct it in Hindi as well and hence IITJEE is being conducted successfully for many years now in Hindi as well as Hindi. The same may be extended to the CAT examination for IIMs as well, in a much easier manner.
Similarly, for the various reasons stated above, both the IITJEE and the CAT examination can be and (possibly) shall be conducted in the important regional languages as well.
In this background, I request you to kindly make a serious consideration of my representation being presented to you and to decide over this matter to conduct both the IITJEE and the CAT examination in Hindi and important regional languages, other than English so as to-
1.    Help strengthen the regional languages and Hindi
2.    End the prevailing discrimination to the students studying in regional languages
3.    Bring a large representation from the poorer and down to earth classes
4.    Bring more such people to these prestigious Institutions who are possibly more affiliated to the Nation and its core development

I would finally request that though initially this suggestion might seem preposterous and far-fetched but it can easily be achieved once a favourable decision is made and due instructions are accordingly given to the concerned authorities. The proposal is worth undertaking, considering the various accompanying benefits that would accrue out of it. I would once again reiterate that these are my personal suggestions, purely on a personal basis

Lt No- AT/IIT/Lang                             Yours,
Dated-03/05/2012
(Amitabh Thakur)
5/426, Viram Khand,
Gomti Nagar, Lucknow
# 94155-34526
[email protected]
————————–
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
[email protected]
[email protected]

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भारत का राष्ट्रपति सर्वसम्मति से चुना जाना ही राष्ट्र हित में होगा

Posted on 04 May 2012 by admin

राष्ट्रपति कौन व्यक्ति बने इससे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि कैसा व्यक्ति बने! - डा0 जगदीश गाँधी

jagdish-gandhiभारत को आज एक ऐसे राष्ट्रपति की आवश्यकता है जो दुनियाँ की समस्याओं से मुँह मोड़कर केवल अपने देश की समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित न करे, बल्कि विश्व के सभी देशों की सुरक्षा, स्वतंत्रता व शांति के लिए सम्पूर्ण मानवजाति को एक नए युग की ओर ले जाये।
आज देश और संसार की विषम परिस्थितियों में भारत के राष्ट्रपति का सर्वसम्मति से चुना जाना बहुत ही आवश्यक है। भारत में राष्ट्रपति का पद संविधान के प्रहरी का पद है, इसलिए इस पद पर चुने जाने वाला व्यक्ति सभी विवादों से परे होना चाहिए। भारत का राष्ट्रपति ऐसा हो जो भारत एवं संसार को निराशा, अव्यवस्था एवं कुण्ठा से बचाने का कारण बन सके। आज सारे विश्व में जो कुछ भी घटित हो रहा है उसका प्रभाव निश्चित ही विश्व के हर देश पर अनिवार्य रुप से पड़ता है। इसलिए हमारा ऐसा मानना है कि जब देश के संविधान के प्रहरी को चुनने का सवाल हो तो हमें सर्वसम्मति से ऐसे व्यक्ति को राष्ट्रपति चुनना चाहिये जो भारत राष्ट्र के साथ ही साथ सारे संसार को एकजुट कर सके। इसके साथ ही उसका सारा जीवन निर्विवाद व निष्कलंक हो और सभी धर्मों की एकता तथा मानवमात्र के हित में अनेक वर्षों से निस्वार्थ भाव से लगा हुआ हो।
विश्व के सभी देशों में आज बमों का जखीरा और भीषण मारक अस्त्रों को इकट्ठा करने की होड़ लगातार बढ़ती जा रही है। अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, धार्मिक विद्वेष, राष्ट्रों के बीच बढ़ती हुई दूरियाँ, संसार में अव्यवस्था व अराजकता, विश्वव्यापी पर्यावरण विनाश और वैश्विक उष्णता जैसी समस्याओं से हमारा देश भी अछूता नहीं है। इन विश्वव्यापी समस्याओं के कारण आज सारे समाज की स्थितियाँ ऐसी भयावह बनती जा रही है जिससे कि भारत के 40 करोड़ बच्चों के साथ ही विश्व के 2 अरब बच्चों व आगे जन्म लेनी वाली पीढि़यों का भविष्य तीव्रता से असुरक्षित तथा अन्धकारमय होता जा रहा है।
हमारा मानना है कि भारत के पास अपनी संस्कृति एवं संविधान के रूप में दो महत्वपूर्ण निधियाँ प्राप्त
हैं:- (1) भारतीय संस्कृति का आदर्श ‘उदार चरितानामतु वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात उदार चरित्र वालों के लिए सम्पूर्ण वसुधा अपना परिवार है एवं इसी विचार से प्रेरित होकर (2) भारतीय गणतंत्र का संविधान और उसमें विशेष रूप से शामिल किया गया ‘अनुच्छेद 51’ का प्राविधान है। इसके अतिरिक्त इस संसार को बचाने का कोई दूसरा उपाय आज संसार के पास उपलब्ध नहीं है। इसलिए भारत का राष्ट्रपति ऐसा होना चाहिए जिसकी भारत की सभ्यता, संस्कृति और संविधान में गहरी आस्था हो और जो संस्कृति और संविधान की मर्यादा सारे विश्व में बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील हो।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 का प्राविधान इस प्रकार है:-
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51:
भारत का गणराज्य यह प्रयत्न करेगा कि:
(ए)     भारत का गणराज्य - अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की अभिवृद्धि करने का प्रयास करेगा।
(बी)     भारत का गणराज्य - संसार के सभी राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को             बनाए रखने का प्रयत्न करेगा,
(सी)     भारत का गणराज्य - सम्पूर्ण संसार में अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करने अर्थात उसका पालन करने की भावना की अभिवृद्धि करेगा।
(डी)     भारत का गणराज्य - अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का हल माध्यास्थम् द्वारा कराने का प्रयास करेगा।
इस प्रकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, भूख, बीमारी, हिंसा, तीसरे विश्व युद्व की आशंका, प्राकृतिक आपदाओं आदि जैसी भयावह समस्याओं का समाधान निहित है।
विश्व के 2 अरब से ज्यादा बच्चों के साथ ही आगे आने वाली पीढि़यों के भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए वर्तमान विश्व में व्याप्त समस्याओं के समाधान हेतु हमें आज भारत का एक ऐसा राष्ट्रपति चाहिए जो कि यूरोप के 27 देशों के द्वारा बनाई गई ‘यूरोपियन पार्लियामेंट’ की तरह ‘विश्व संसद’ ;ॅवतसक च्ंतसपंउमदजद्ध तथा यूरोप के 16 देशों की मुद्रा ‘यूरो’ की तरह ही सारे विश्व की एक मुद्रा बनाने के लिए प्रयत्नशील हो। हमारा मानना है कि ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ जो मानवीय ;भ्नउंदजंतपंदद्ध कार्य कर रहा है वह उसी तरह से करता रहे। इसके साथ ही साथ आज हमें वीटो पाॅवर रहित विश्व संसद ;ॅवतसक च्ंतसपंउमदजद्ध की आवश्यकता है जिससे विश्व की एक सरकार और विश्व का एक न्यायालय बन सके और जिसके आधार पर सारे विश्व की कानून और न्याय पर आधारित एक सृदृढ़ व्यवस्था बन सके।
भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष डा0 राजेंद्र प्रसाद ने 26 नवम्बर 1949 को अपने समापन भाषण में कहा था कि संविधान सभा एक अच्छा संविधान बनाने में सफल हुई है।…….उन्होंने चेतावनी भी दी कि ‘‘यदि लोग, जो चुनकर आयेंगे योग्य और चरित्रवान हुए तो वे दोषपूर्ण संविधान को भी सर्वोत्तम बना देंगे। यदि उनमें इन गुणों का अभाव हुआ तो संविधान देश की कोई मदद नहीं कर सकता।….भारत को इस समय ऐसे लोगों की जरूरत है जो ईमानदार हों तथा जो देश के हित को सर्वोपरि रखें। हमारे जीवन में विविध तर्कों के कारण विघटनकारी प्रवृत्ति उत्पन्न हो रही है। हममें सांप्रदायिक अंतर है, जातिगत अंतर है, भाषागत अंतर है, प्रांतीय अंतर है। इसके लिए दृढ़ चरित्र वाले लोगों की, दूरदर्शी लोगों की जरूरत है जो छोटे-छोटे समूहों तथा क्षेत्रों के लिए देश के व्यापक हितों का बलिदान न दें……।’’
विश्व के अनेक महापुरुषों ने संसार में दिन प्रतिदिन बढ़ते हुए तनाव को रोकने के लिए विश्व सरकार बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। इस सम्बन्ध में विभिन्न महापुरुषों के विचार निम्न हैं:-
1.    राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा है कि - ‘‘भविष्य में विश्व में शांति व सुरक्षा की स्थापना तथा विश्व की प्रगति के लिए संसार के स्वतंत्र राष्ट्रों के एक संगठन की आवश्यकता है और इसके अतिरिक्त, आधुनिक विश्व की समस्याओं के समाधान का और कोई उपाय नहीं है।
2.     पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा है कि ‘‘या तो विश्व एक हो जायेगा या फिर नष्ट हो जायेगा।’’
3.     भारत रत्न डाॅ. बी0 आर0 अम्बेडकर ने कहा है कि ‘‘कानून और व्यवस्था किसी भी राजनीति रूपी शरीर की औषधि है और जब राजनीति रूपी शरीर बीमार हो जाये तो हमें कानून और व्यवस्था रूपी
औषधि का उपयोग राजनीति रूपी शरीर को स्वस्थ करने के लिए करना चाहिए।’’
4.     महान समाजवादी विचारक डाॅ0 राम मनोहर लोहिया ने ‘विश्व विकास परिषद’ का गठन किया था जो कि सम्पूर्ण विश्व में शांति स्थापित करने के लिए विश्व सरकार के गठन की ओर एक महत्वपूर्ण कदम था।
5.     डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा है कि ‘‘एक केन्द्रीय प्राधिकरण (विश्व संसद) की स्थापना करनी होगी जिसके आगे बल प्रयोग के सभी कारकों का समर्पण किया जायेगा और सभी स्वतंत्र राष्ट्रों को, सम्पूर्ण विश्व की सुरक्षा के हित में, अपनी स्वायत्ता (प्रभुसत्ता) के कुछ अंश का परित्याग करना होगा।’’
6.     श्री अटल बिहारी बाजपेयी ने कहा है कि ‘‘विश्व शान्ति के हम साधक हैं हम जंग न होने देंगे।’’
7.     मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा है कि ‘‘या तो हम संसार में रहने वाले सभी भाई-बहिन की तरह मिलकर रहे अन्यथा हम सभी मूर्खों की तरह एक साथ मरेंगे।’’
8.     जाॅन एफ. कैनेडी ने कहा है कि ‘‘हमें मानव जाति को महाविनाश से बचाने के लिए विश्वव्यापी कानून बनाना होगा एवं इसको लागू करने वाली संस्था को स्थापित करना आवश्यक होगा और विश्व में युद्ध और हथियारों की दौड़ को विधि विरूद्ध घोषित करना होगा।’’
9.     सर विन्सटन चर्चिल ने कहा है कि ‘‘जब तक हम विश्व सरकार का गठन नहीं कर लेते तब तक हमारे लिए तृतीय विश्व युद्ध को टालना संभव नहीं होगा।’’
10.     संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव यू थाँ ने कहा है कि ‘‘कानून की डोर से बंधा हुआ विश्व पूर्णतया वास्तविक है तथा इसे प्राप्त किया जा सकता है।’’
11.     महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है कि ‘‘केवल विश्व कानून एक सभ्य, शंातिपूर्ण समाज की ओर ले जाने की गांरटी दे सकता है।’’
12.     मिखाईल गोर्बाचोव ने कहा कि ‘‘किसी प्रकार की एक विश्व सरकार की जरूरत के बारे में जागरूकता तेजी से फैल रही है तथा एक ऐसी विश्व व्यवस्था बनाना आवश्यक है जिसमें विश्व समुदाय के सभी सदस्य भाग लेगे।’’
13.     ड्वइट डी. आइज़नहाॅवर ने कहा है कि ‘‘एक ऐसा विश्व कानून होना चाहिए जिसका सभी राष्ट्र समान रूप से सम्मान करें क्योंकि बिना ऐसे विश्व कानून के, न्याय उसी प्रकार का हो जायेगा जैसे किसी शक्तिशाली द्वारा किसी कमजोर पर की गई दया’’
14.     पोप जाॅन पाल द्वितीय ने कहा है कि ‘‘अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को नियमित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को एक कानून व्यवस्था का समर्थन करना चाहिए।’’
15.     बटे्न्ड रसेल ने कहा है कि ‘‘मैं फिर से कहता हूँ कि ‘हमारा लक्ष्य’ एक विश्व सरकार के गठन का होना चाहिए।’’
16.     रोमा राॅलेण्द, फ्रांसीसी विचारक ने कहा है कि ‘‘यदि धरती पर ऐसी कोई जगह हैं, जहाँ मनुष्य ने जब से अस्तित्व का सपना देखना शुरू किया तब से सभी जीवित मनुष्यों के सपनों को घर मिला है, तो वह केवल भारत है।
आज मानव जाति के अस्तित्व की रक्षा का प्रश्न संसार का सबसे बड़ा प्रश्न है। सारा विश्व शस्त्रों की होड़, अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, पर्यावरण विनाश एवं धार्मिक विद्वेष के कारण असुरक्षित हो गया है और एक भयंकर अनिश्ंिचतता के दौर से गुजर रहा है। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के अलावा ऐसा कोई अन्य उपाय नहीं है जिसके द्वारा विश्व की समस्याओं का समाधान किया जा सके। इसलिए आज हमें एक ऐसे राष्ट्रपति को सर्वसम्मति से चुनना चाहिये जो अपने देश के संविधान के अनुसार भारत के साथ ही साथ विश्व के 2 अरब से ज्यादा बच्चों के तथा आगे जन्म लेने वाली पीढि़यों के भविष्य को सुन्दर बनाने के लिए पिछले अनेक वर्षों से निस्वार्थ भाव से सतत् प्रयत्नशील हो। इसके लिए सर्वसम्मति से ऐसे व्यक्ति को भारत के राष्ट्रपति के पद पर चुनना चाहिये जो सभी देशों के राष्ट्रपति/प्रधानमंत्रियों की मीटिंग बुला कर सर्वसम्मति से विश्व संसद, विश्व सरकार एवं विश्व न्यायालय के गठन के लिए प्रयत्न करे, ताकि वह अपने देश के साथ ही सारे विश्व को महाविनाश से बचाकर उसे सुख, समृद्धि व सुरक्षा के मार्ग पर ले जा सके।

डा0 जगदीश गाँधी
प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक
सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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टीम अण्णा का भ्रष्टाचार.विरोधी आंदोलन

Posted on 11 April 2012 by admin

श्री अण्णा हजारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के विरुद्ध जो पहलकदमी की गईए वह न सिर्फ समय की पुकार है बल्कि हमारे सभ्यता और समाज की जीवंतता को अविरल प्रवाह देने के लिए दिया गया कोरामिन का इंजेक्शन भी है। भ्रष्टाचार का सम्पूर्ण उन्मूलनए कभी भी सम्भव नहीं हैए परंतु भ्रष्टाचार हमारी संस्कृति नहीं होनी चाहिए। मात्र तीस हजार रुपयों की नौकरी करने वाला व्यक्ति पचास लाख रुपयों की कीमत देकर गृह दृ निर्माण में यदि संकोच करता है और उसे समाज का भय होता हैए तो समझा जाना चाहिए कि भ्रष्टाचार उस समाज की संस्कृति नहीं है। कल्पना कीजिए कि भारत में रिश्वतखोर विशेषण लोगों को गाली लगने लगा हो! चाह कर भी रिश्वतखोरी से डर लगने लगा होए सामान्य नागरिक के मन में यह बात घर कर गया हो कि अब किसी भी व्यक्ति के आय और व्यय का असंतुलन समाज और शासन.व्यवस्था की नजरों से छुप नहीं सकता। व्यक्ति की नाज़ायज कमाई के कारण उसे सजा और जिल्लत झेलना ही पड़ेगाए तो समाज की ऐसी स्थिति एक स्वस्थ सामाजिक स्थिति होगी। ऐसी स्थिति आ जाने पर हमारी यह सोने की चिड़िया कही जाने वाली भारत माता पुनरू अपने प्राचीन वैभवए शक्ति और सम्मान को स्वतरू ही प्राप्त कर विश्व का सिरमौर बन जाएगी।
अण्णा टीम ने बेशक ग़लतियां की होंए परंतु उनका आंदोलन न कभी  अप्रासांगिक था और न कभी होगा। भ्रष्टाचार समाज के हर अंग में प्रवेश कर गया हैए परंतु आज भी हर व्यक्ति भ्रष्टाचारी नहीं है। कल्पना कीजिए कि वाणिज्यकर का एक अधिकारी कभी रिश्वत नहीं लेता है। उसी अधिकारी को कोई व्यक्ति दिपावली के पावन अवसर पर मिठाइयों के साथ.साथ गणेश.लक्ष्मी की तस्वीर युक्त चांदी का सिक्का भेंट करता है जिसे उक्त अधिकारी भेंटकर्ता के दबाव में स्वीकार कर लेता है। नियमानुसारए उक्त अधिकारी ने ग़लत काम किया। ऐसे ही बहुत से अधिकारी और नेता हैंए जो दिल से भ्रष्टाचार करना नहीं चाह्तेए परंतु कई बार बिना सोंचे समझे और कई बार दबाव में ग़ल्तियां कर गुजरते हैं। ऐसे इंसानों को भी देश का भ्रष्टाचार फूटी आंखों से नहीं सुहाता है। टीम अण्णा में भी जो लोग हैंए उनसे भी कुछेक ग़लतियां हुई होंए परंतु इन ग़ल्तियों की वजह से भृष्टाचार के विरुद्ध उनकी मुख़र वाणी पर विराम नहीं लगाया जा सकता है। सम्पूर्ण देश में करोड़ों की तादात में ऐसे लोग वर्तमान हैंए जिन्होंने जाने अंजाने अपनी ईमानदारी की चादर में दाग लगा लिया होगाए परंतु बेईमानी उनके मूल्यों से मेल नहीं खाता होगा।
अण्णा टीम के अनेकानेक सदस्यों पर दोषारोपण इस लिए किया गया ताकि उनके आंदोलन की धार कुंद किया जा सके। थोड़ी देर के लिए यह मान भी लिया जाय कि उक्त टीम के कुछ सदस्य भ्रष्ट हैं। फिर भी ण्ण्ण्ण् उनकी मांग में किसी प्रकार के स्वार्थ का समावेश तो नहीं हैघ् उनकी मांग भारत के संविधान का विरोधी तो नहीं है! भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में मज़बूत लोकपाल की नियुक्ति सिर्फ एक कदम मात्र है। लोकपाल की नियुक्ति मंज़िल नहीं हो सकती है। अण्णा टीम में कमजोरियां हैए उन्होंने ग़्लतियां की हैंए वह दम्भी हैंए वह सिर्फ अपना प्रचार करना चाहते हैंण्ण्ण् इन आरोपों में कुछ दम हो सकता है। यदि उन्होंने कोई ग़ैरकानूनी कार्य किया है तो उन पर मुक़दमें चलाए जा सकते हैंए परंतु सरकार और राजनीतिक बिरादरी को यह हक़ नहीं मिल जाता कि वह देश से भ्रष्टाचार मिटाने का स्वयं भी प्रयास न करें और इस निमित्त प्रयत्नशील लोगों का सिर्फ चरित्रहनन करनें में अपनी सारी उर्जा का अपव्यय कर डालें।
टीम अण्णा के आंदोलन का प्रभाव विगत चुनाओं में यदि कम रहा तो इसका मूल कारण सही विकल्प की अनुपलब्धता थी। वर्तमान परिदृश्य में देश के तमाम राजनीतिक दलों के सदस्यों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। जनता आख़िर किसको चुनतीघ् भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों का निर्माण और उनका सही अनुपालन सुनिश्चित किया जानाए समाज और विशेष कर राजनैतिक दलों के क्रिया.कलापों पर अपना प्रभाव छोड़ेगी। तदुपरांत सामाजिक प्रदूषण विरल होंगे।           टीम अण्णा यदि भ्रष्टाचार.विरोधी मुहिम का नेतृत्व करना चाहती हैए तो उसे समाज के प्रत्येक वर्ग का सहयोग लेने में किसी प्रकार का संकोच नहीं करना चाहिए। यदि मुस्लिम लीग का कोई सदस्य उन्हें सहयोग करता है तो क्या उन्हें उसका सहयोग लेने से मना कर देना चाहिएघ् उन पर आरोप लगाया जाता है कि वह भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंट हैं। अपनें पूर्वाग्रहों के कारण टीम अण्णा के सदस्य इसका माकूल जवाब नहीं देते। उन्हें सीना ठोंक कर कहना चाहिए थाए श्संघ परिवार क्याघ् हम तो कांग्रेसियोंए कम्युनिस्टों सपाइयोंए बसपाइयों और राजद वालों के सहयोग लेने में भी कोई संकोच नहीं करते। भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुहिम के प्रतिफल के रूप में आने वाले कानून का उपयोग भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध होना हैए किसी दल विशेष के विरुद्ध नहीं। भ्रष्टाचार के वायरस जिस भी दल में होंए जिस भी समूह में होए हमारे कानून वहीं पर पहुंच कर एंटी वाइरस का काम करेगें।श्
अंत में राजनीतिक दलों से गुज़ारिश और उम्मीदें ण्ण्ण्ण् क्यों दाग़ियों को टिकट देते होघ् हो सकता है कि भविष्य में दागियों में से कई निरपराध सिद्ध होंए परंतु देश में निष्कलंक लोगों की तो कोई कमी नहीं! जघन्य अपराधों के आरोपियों को यदि टिकट नहीं मिला तो कोई भूकम्प नहीं आ जाएगा ण्ण्ण्प्रजातंत्र को यदि सही दिशा देना है तो संसद स्वयं ही ऐसा कानून बना डाले जिसके तहत जघन्य अपराधों के आरोपियों को संसद और विधान सभा जैसे पावन सदनों में प्रवेश से रोका जा सके।

अनूप कुमार सिन्हा
vishwa sambad Kendra Ranchi
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सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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कथनी व करनी का समन्वय ही प्रसन्नता प्रदान करता है - डा. रोजर डेविड किंगडन, प्रख्यात शिक्षाविद्, इंग्लैण्ड

Posted on 11 March 2012 by admin

सिटी मोन्टेसरी स्कूल, गोमती नगर स्थित सभागार में आयोजित विश्व एकता संत्संग में समाज के विभिन्न तबकों से पधारे प्रतिष्ठित हस्तियों ने हैपीनेस अर्थात प्रसन्नता पर विस्तृत चर्चा की एवं इस संदर्भ में महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किए। इस अवसर पर  अपने विचार व्यक्त करते हुए इंग्लैण्ड से पधारे प्रख्यात शिक्षाविद् डा. रोजर डेविड किंगडन ने कहा कि जब हम मानवीय विकारों का विश्लेषण करते हैं तो ज्यादातर ध्यान अनहैपीनेस अर्थात अप्रसन्नता को देते हैं। दुखों पर केन्द्रित ‘ द पाॅवर आॅफ हैपीनेस’ में वर्णित किया गया है कि प्रसन्न होना महत्वपूर्ण है। अब्दुल बहा के शब्दों को उद्घृत करते हुए डा. किंगडन ने कहा कि आज अगर आप ख्ुाश नहीं है तो कल कैसे खुश होंगे। इसी प्रकार महात्मा गाँधी के विचारों को उद्घृत करते हुए उन्होंने कहा कि ‘आप क्या सोचते हैं, क्या कहते हैं, क्या करते हैं, का आपसी समन्वय ही प्रसन्नता है’। डा. किंगडन ने आगे कहा कि वास्तव में कथनी व करनी का समन्वय ही  प्रसन्नत का दूसरा नाम है। दरअसल खुशी उसमें नहीं है जो कुछ आप प्राप्त करना चाहते हैं अपितु वास्तविक खुशी उसमें होनी चाहिए जो कुछ आपके पास है।
सी.एम.एस. संस्थापिका व प्रख्यात शिक्षाविद् डा. (श्रीमती) भारती गाँधी ने अपने संबोधन में कहा कि आध्यात्मिक जगत में दुख का बोध नहीं होता। आध्यात्मिक मनोभूमि बनती है तो जीवन में आनंद ही आनंद उभरता है। प्रभु की दुनिया में समर्पित होने के बाद दुख की दुनिया नष्ट हो जाती है। डा. गाँधी ने आगे कहा कि दुखों की जड़ सांसारिक जगत में है, आध्यात्मिक जगत में दुख का कोई स्थान नहीं। उन्होंने कहा कि जीवन में तकलीफ आये तो प्रभु को याद किया जाए, उनके लिए प्रार्थना की जाए। संसार के लोगा प्रार्थना नहीं सुनते हैं लेकिन प्रभु केवल प्रार्थना से ही पसीजते हैं। उन्होंने बहाउल्लाह के जीवन का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होने जेल में बिताये अपने चालीस वर्षों को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना क्योंकि इसी अवधि में उन्हें प्रभु से सर्वाधिक निकटता का अनुभव प्राप्त करने का अवसर मिला।
इसी प्रकार प्रख्यात विचारक व पत्रकार श्री वीर विक्रम बहादुर मिश्र ने कहा कि हैपीनेस शब्द आनन्द को ठीक प्रकार से व्यक्त नहीं करता है। आध्यात्म ही आनन्द है। आध्यात्म रेाती हुई आत्मा को प्रसन्न करने की कुंजी है। जो संसाधन आज सुख का साधन है वही हमें दुख की ओर ले जाते हैं। दुख का विस्तार बहुत बड़ा है। सुख और दुख आपस में एक भाई समान है। जहां दुख है वहां सुख है। आध्यात्म हमें दुख और सुख से परिचय करता है। जब परमेश्वर की कृपा होती है तब आध्यात्म का ज्ञान होता है। इसी प्रकार बहाई धर्म की प्रमुख अनुयायी श्रीमती मोहाजिर ने कहा कि ज्ञानी व्यक्ति कहते हैं कि अगर कोई इच्छा नहीं है तो आप प्रसन्न है। हमारी इच्छाएं अनन्त हैं और यही दुख का कारण है। खुशी दो प्रकार की होती है आन्तरिक आनन्द एवं इन्द्रिय सुख। जो व्यक्ति खुश नहीं होता वो आध्यात्मिक नहीं है। सुख उसी को प्राप्त है जो आनन्द में है। इस्लाम धर्म के अनुयायी श्री आब्दी ने कहा कि आध्यात्म और आध्यात्मिकता एक शब्द के दो पहलू हैं। आध्यात्म है आपकी सोच, आपके किए गये कार्यों के आधार पर आपके आध्यात्म का निर्माण होता है जबकि आध्यात्मिकता वह स्थिति है जब ईश्वरत्व का सच्चा ज्ञान हो जाए। उन्होंने कहा कि आध्यात्मकता को प्राप्त करने के लिए कई रास्ते हैं बस उसको पहचानने की जरूरत है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

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