पिछले दो दशकों में कृषि के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी में महत्त्वपूर्ण वृद्धि हुई है स इसका प्रमाण इस बात से लगाया जा सकता है की आज भारत में कृषि से जुडी हुई कुल जनसँख्या की लगभग 40 प्रतिशत आबादी महिलाओं की है स यह बात प्रदेश के एक प्रख्यात आर्थिक एवं सामाजिक शोध संस्थान “अवध रिसर्च फाउंडेशन के वार्षिक समारोह के दौरान आयोजित एक चर्चा में उभर कर आई स यह समारोह दिनांक 27जी जुलाई, 2012 को होटल डायमंड पैलेस, लखनऊ के सभागार में आयोजित किया गया स
यह कार्यक्रम देश एवं विदेश के प्रतिष्ठित शोधकर्ताओं, प्रबंधकों, शिक्षाविदों तथा शासनतंत्र के संचालनकर्ताओं को एक मंच पर लाने का एक अनूठा प्रयास था स इस कार्यक्रम का उदघाटन ।त्थ् के निदेशकों अनुपम चटर्जी एवं श्री संतोष श्रीवास्तव द्वारा किया गया स कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिनिधियों द्वारा भाग लिया गया स
सभा को संबोधित करते हुए श्री अनुपम चटर्जी (निदेशक प्रोजेक्ट्स, ने कहा कि “आंकड़ों के अनुसार देश के कुल ग्रामीण पुरुष श्रमिकों का लगभग 53 प्रतिशत कृषि में हैं, जबकि कुल ग्रामीण महिला श्रमिकों का लगभग 85 प्रतिशत कृषि में कार्यरत है तथा यह अंतर नित्य बढ़ता ही जा रहा है स एक अनुमान के अनुसार हमारे गाँवों के लगभग एक चैथाई परिवारों का भरण-पोषण विभिन्न कारणों-वश महिलाओं द्वारा ही किया जाता है स इन कारणों में पति की अकाल मृत्यु, परित्याग तथा परिवार के पुरुषों का जीविका की तलाश में शहरों की ओर पलायन करना शामिल हैं स परिणाम स्वरुप इन महिलाओं को अक्सर परिवार से जुड़े सभी कार्यों की बागडोर अपने हाथों में लेनी पड़ती है, चाहे वो खेती हो या फिर पशुधन सँभालने की जिम्मेदारी स”
देश में महिलाओं की कृषि के क्षेत्र में प्रमुख भूमिका होने के बावजूद हमारे देश के पुरुष प्रधान समाज में आज भी भूमि का स्वामित्व अधिकतर पुरुषों के हाथों में ही केंद्रित है स एक अनुमान के अनुसार भारत में महिलाओं के नाम भूमि का स्वामित्व मात्र 10 प्रतिशत ही है स सभा को संबोधित करते हुए श्री संतोष श्रीवास्तव (निदेशक आपरेशन्स, ।त्थ्) ने कहा कि “स्वामित्व का अधिकार न होने से कृषि से जुड़े महिलाओं की दक्षता पर काफी असर पड़ता है, क्योंकि स्वामित्व के अभाव में महिलाओं को जहाँ एक ओर बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थाओं द्वारा ऋण नहीं प्राप्त हो पाता है वहीँ दूसरी ओर उन्हे सिंचाई एवं कृषि से जुड़े अन्य संसाधनों को भी प्राप्त करने में विषम परिस्थितिओं का सामना करना पड़ता है।
अवध रिसर्च फाउंडेशन (ए.आर.एफ.) के इस कार्यक्रम के दौरान चर्चा में भाग लेने वाले लगभग सभी सदस्यों ने हिंदू सक्षेशन (अमेंडमेंट) एक्ट (भ्ै।।), 2005 को महिलाओं के सशक्तिकरण का एक प्रमुख माध्यम बताया स परन्तु चर्चा में भाग ले रहे लगभग सभी वक्ता इस बात पर भी सहमत होते नजर
आये की इस प्रकार के किसी भी कानून को राष्ट्रीय स्तर पर सफलता पूर्वक क्रियान्वित करने हेतु एक सतत अभियान की आवश्यकता है तथा ऐसे प्रयासों के आभाव में भ्ै।। जैसे सभी कानून अप्रासंगिक है।
वार्षिक कार्यक्रम संसथान के संस्थापकों एवं प्रबंधकों का उनके दल के सभी सदस्यों का उनकी निष्ठा, कार्यकुशलता व निस्वार्थ भावना के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का भी माध्यम था स इस अवसर पर बोलते हुए श्री संतोष श्रीवास्तव ने टीम के सदस्यों की प्रसंशा करते हुए कहा कि “आज के युग में आर्थिक व सामाजिक शोध के महत्व को ध्यान में रखते हुए यह अत्यंत आवश्यक है की हमारी टीम के सभी सदस्य अपनी पूरी लगन व निष्ठा से अपना कार्य करते रहें स इस अवसर पर श्री अनुपम चटर्जी ने कहा कि “विकास से जुडी ज्वलंत समस्याओं के समाधान के लिए यह आवश्यक है की हम एक सशक्त एवं क्रियाशील प्रणाली की संरचना की ओर अपना ध्यान केंद्रित करें स इससे हमारे निति निर्धारकों व शासनतंत्र के संचालनकर्ताओं को विकास के विभिन्न कार्यक्रमों को सुचारू एवं बेहतर ढंग से क्रियान्वित करने में सहायता मिलती है.
अवध रिसर्च फाउंडेशन वर्ष 2005 में स्थापित एक प्रख्यात आर्थिक व सामाजिक शोध संस्थान है स विगत कुछ वर्षों में संस्थान को देश-विदेश के कई विख्यात संस्थाओ के साथ कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ है जिनमें विश्व बैंक, मेरीलैंड यूनीवर्सिटी-यू.एस.ए., वर्जीनिया यूनीवर्सिटी-यू.एस.ए., ब्राउन यूनीवर्सिटी-यू.एस.ए., गूगल फाउंडेशन, बिल व मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर दृ लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स तथा फाउंडेशन ऑफ एडवांस्ड स्टडीज इन इंटरनेशनल डेवेलोपमेंट, जापान प्रमुख हैं।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
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