Archive | May, 2011

गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी के कारनामों के 20 वर्ष उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड और दिल्ली के 12 बहादुरों का सम्मान

Posted on 25 May 2011 by admin

गोडफ्रे फिलिप्स इण्डिया द्वारा अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को निभाने के लिए शुरू किए गए, गोडफ्रे बहादुरी पुरस्कारों के अन्तर्गत आज उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और दिल्ली के 12 बहादुरों को सम्मानित किया गया। उत्तर प्रदेश के माननीय राज्यपाल, श्री बी.एल. जोशी ने उन्हें लखनऊ में आयोजित समारोह में ये पुरस्कार प्रदान किए।

इस अवसर पर अपने सम्बोधन में गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों के महासचिव, श्री हरमनजीत सिंह ने बताया, ‘‘गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार 1990 में आम आदमी द्वारा किए गए बहादुरी के कारनामों का सम्मान करने के लिए शुरू किए गए थे। आज 20 साल बाद यह अभियान सभी आयु, धर्म, जाति के लोगों को बहादुरी की मशाल जलाते रहने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। 20 वर्ष की इस सफल यात्रा के इस वर्ष हम आज 20 राज्यों में पदार्पण कर रहे हैं और चार अन्य राज्य, जम्मू-कश्मीर, झारखण्ड, तमिलनाडु और केरल इस अभियान से जोड़े जा रहे हैं।’’

photo-sammanउन्होंने कहा कि गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों और अमोदिनी, अपनी दो पहल से हम साहसिक भावना और समाज के सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रहे हैं। हमें गर्व है कि हमने 1,200 बहादुरों को सम्मानित किया है और 7,600 महिलाओं को सीधे सशक्त बनाया है।

उत्तर प्रदेश के श्री मोहम्मद शरीफ को अस्पतालों में ऐसे गरीब मरीजों की सेवा करने के लिए सामाजिक बहादुरी विषेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया है जिनकी देख-रेख के लिए परिवार का कोई सदस्य उपस्थित नहीं होता। उत्तराखण्ड की गैर-सरकारी संस्था, पहल को गरीब औरतों के सशक्तिकरण की दिशा में अनुकरणीय कार्यों के लिए अमोदिनी पुरस्कार प्रदान किया गया है। पहल ने महिलाओं को आत्म-निर्भर बनाने के लिए छोटे ऋणों का मार्ग चुना और सबसे अधिक संख्या में स्वयं सहायता समूहों का गठन किया है।

सामाजिक बहादुरी पुरस्कार दिल्ली के श्री दीपक कुमार, उत्तराखण्ड के प्रोफेसर अजय सिंह रावत तथा उत्तर प्रदेश की कुमारी नीरज को दिया गया। दीपक ने 15 वर्ष की छोटी सी आयु में रक्तदान करना शुरू किया और सबसे कम आयु के स्वेच्छा से रक्तदान करने वाले बने। बाद में कई संस्थाओं से भी जुड़े। प्रोफेसर रावत ने बिल्डर माफिया, खनन माफिया और लकड़ी की तिजारत करने वाले माफिया के खिलाफ निरन्तर अभियान चलाया और पर्यावरण की रक्षा की। कुमारी नीरज ने एक ऐसे स्कूल में पढ़ाने का बीड़ा उठाया जहाँ कोई सुविधा, कोई अध्यापक नहीं था और जिसे ‘अनाथ स्कूल’ के नाम से जाना जाता था।

शारीरिक बहादुरी पुरस्कार दिल्ली के श्री पवन कुमार (जो मुम्बई-दिल्ली राजधानी में पैन्ट्री इन्चार्ज थे) को प्रदान किया गया। इन्होंने एक बड़ी दुर्घटना टाल कर जलती ट्रेन के 150 से अधिक लोगों की जान बचाई। श्री सलीम अहमद को भी शारीरिक बहादुरी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इन्होंने सशक्त बदमाशों और उनके आग उगलते हथियारों की परवाह न करते हुए अनेक पर्यटकों को बदमाशों के शैतानी इरादों से बचाया। श्री रईस अहमद, श्री शमशाद और उनकी बहन, सुश्री शहनाज को भी अद्वितीय साहस तथा दूसरों के लिए अपनी जान जोखिम में डालने के लिए यह पुरस्कार प्रदान किया गया है।

उत्तराखण्ड के श्री संतोष सिंह नेगी को माइण्ड आॅफ स्टील पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साहस और शक्ति की प्रतिमूर्ति, श्री संतोष के अंग बचपन से ही छोटे थे। संघर्ष के बावजूद उन्होंने अपनी जिन्दगी शान से बिताई है और पढ़ाई में हमेशा आगे ही रहे। वे छोटे ही थे कि माता का देहान्त हो गया और पिता सेवा निवृत्त हो गए। किसी प्रकार की नियमित आय न होने पर उन्होंने बच्चों को ट्यूशन देना शुरू किया और अपने भाई-बहन को पढ़ाया व अपनी पढ़ाई का इन्तजाम किया। श्री नेगी इस समय एम.ए. (अर्थशास्त्र) और एम.बी.ए. की पढ़ाई के साथ-साथ आई.ए.एस. की तैयारी भी कर रहे हैं।

गोडफ्रे फिलिप्स इण्डिया ने गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार 1990 में शुरू किए थे। ये पुरस्कार आम आदमी में एक अनूठी भावना का प्रवाह करते हैं और शारीरिक बहादुरी, समाज सेवा व मानवीय भावना को सम्मानित करते हैं। गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों का उद्देश्य जनता में निःस्वार्थ सेवा भाव का प्रवाह करना है। इन दो पहल - गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार और अमोदिनी पुरस्कारों के अन्तर्गत 1,200 से अधिक बहादुरों को सम्मानित किया गया है और 7,000 महिलाओं को सशक्त बनाया गया है।

1990 में शुरू होने के बाद से ये पुरस्कार 20 राज्यों - उड़ीसा, छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, गोवा, हिमाचल प्रदेश में दिय जा रहे हैं। हाल ही में इस सूची में जम्मू-कश्मीर, झारखण्ड, तमिलनाडु और केरल शामिल हो गए हैं।

क्षेत्रीय स्तर पर पाँच समारोहों के बाद नवम्बर में दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों की घोषणा की जाएगी।

गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र    ः    दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी    ः    शारीरिक बहादुरी

बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:
बहादुर आमंत्रण के मोहताज नहीं होते। 26-वर्षीय शमषाद और उनकी बहन, शहनाज ने 10 मई, 2009 को अपहरण की एक कोशिश को नाकाम कर यह साबित कर दिया है।
शमशाद अपने घर बैठे चाय पी रहे थे, कि उन्होंने मदद के लिए गुहार सुनी। कुछ लोगों एक व्यक्ति को जबरन कार में खींच रहे थे।

छरअसल, एक व्यापारी, श्री अजय गुप्ता का अपहरण करने का प्रयास किया जा रहा था। अपनी सुरक्षा की परवाह न करते हुए, वह तेजी से कार की तरफ दौड़े और एक अपहरणकर्ता को धर-दबोचा। उनकी बहन व दादी भी उनके पीछे दौड़ पड़ीं।

भाई-बहन अपहरणकर्ताओं से भिड़ चुके थे। अजय गुप्ता ने स्वयं को अपहरणकर्ताओं से छुड़ाया और जान बचाने के लिए एक मंदिर में जा घुसे।

इस दौरान एक अपहरणकर्ता ने रिवाल्वर निकाली और शमशाद को धमकाने लगा। फिर भी, शमशाद ने उसे अपने गिरफ्त से जाने नहीं दिया। अपहरणकर्ता ने गोली चला दी, जो शमशाद के सिर में लगी। वे गिर पड़े तथा अपहरणकर्ता भाग खड़े हुए।

शमशाद को अस्पताल ले जाया गया। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल और एक मंत्री ने अस्पताल जा कर बहादुरी के लिए शमशाद शमशाद को बधाई दी।

उत्तर प्रदेष के श्री शमषाद और  शहनाज को अदम्य साहस तथा बहादुरी के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की शारीरिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।

गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र    ः    दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी    ः    शारीरिक बहादुरी

बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:
शान्त और समझदार, ऐसे दो गुण हैं जो बहादुरों को आम लोगों से अलग करते हैं। रईस अहमद देहरादून से कोटद्वार की बस चला रहे थे। बस में 37 यात्री सवार थे। जैसे ही बस लच्छीवाला मोड़ पर पहुंची उसके बे्रक और गियर बाॅक्स ने काम करना बंद कर दिया।

गाड़ी ढलान पर थी। बस पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो रहा था। बस रोकने का कोई तरीका दिखाई नहीं दे रहा था।

बस 80 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही थी। सभी यात्रियों में भय छा गया और वे शोर मचाने लगे। लेकिन, रईस अहमद शान्त थे और उनका ध्यान स्थिति का मुकाबला करने पर केन्द्रित था। वे बस को घुमावदार सड़कों पर चलाते रहे तथा सामने सड़क पर आने वाले लोगों को सामने से हटने की हिदायत देते रहे।

उन्होंने सभी यात्रियों से गाड़ी में पीछे की ओर जमा होने का अनुरोध किया और बस को वन विभाग के कार्यालय की ओर ले गए। उन्होंने बस को विभाग की चारदीवारी से जा टकराया। बस रुक गई और यात्री बिना किसी गम्भीर चोट के सुरक्षित बाहर आ गए।

उत्तराखण्ड के श्री रईस अहमद को अदम्य साहस, सूझबूझ तथा बहादुरी के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की शारीरिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।

गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र    ः    दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड
श्रेणी    ः    शारीरिक बहादुरी

बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:
रिक्शा चालक, सलीम अहमद की बहादुरी देशवासियों द्वारा लम्बे समय तक याद रखी जाएगी। सशस्त्र आतंकवादियों और उनके आग उगलते हथियारों की परवाह न करते हुए सलीम अहमद ने आतंकवादियों का पीछा किया तथा अनेक पर्यटकों को उनके शैतानी इरादों से बचाया।

19 सितम्बर, 2010 की वह भयावह सुबह। सलीम अहमद रोज की तरह लोगों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के अपने काम में लगे हुए थे। अचानक उन्होंने दो अज्ञात मोटरसाइकिल सवारों को पर्यटकों के एक दल पर गोली चलाते देखा। ये पर्यटक जामा मस्जिद देख कर वापस लौट रहे थे। आतंकवादियों ने 12 गोलियां चलाईं।

अदम्य साहस का परिचय देते हुए वे तुरन्त अपनी रिक्शा से उतर गए। उन्होंने जमीन पर पड़ी एक ईंट उठाई तथा आतंकवादियों की तरफ फैंकी। उन्होंने आतंकवादियों का पीछा भी किया। इस बहादुर का साहस देखकर आतंकवादी घबरा गए और अपना हथियार छोड़ भाग खड़े हुए।

सलीम अहमद की बीमार बीबी और दो बच्चे हैं। वे अपनी बहादुरी के कारण अनेक दिलों में छा गए हैं। कुछ कंपनियों और व्यक्तियों ने आगे आकर उनकी बीबी के इलाज का खर्च उठाने का वायदा किया है। दिल्ली पुलिस ने भी उनके लिए 25 हजार रुपये के पुरस्कार की घोषणा की है।

दिल्ली के श्री सलीम अहमद को अदम्य साहस, निर्भीकता तथा बहादुरी के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की शारीरिक बहादुरी श्रेणी में विषेष पुरस्कार से पुरस्कृत किया जाता है।

गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स
क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड

श्रेणी: शारीरिक बहादुरी

बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:

उस दुखद घटना की याद आते ही बहादुर अंजुम की आँखों में आँसू आ जाते हैं। वे अपनी केवल एक साथी को ही बचा पाईं और अपनी बाकी पाँच साथियों के लिए कुछ नहीं कर पाईं।

उस दिन अंजुम अपनी छह साथियों के साथ स्कूल से वापस आ रहीं थी। वे और उनकी सहेलियाँ रेलवे ट्रैक पार कर रहीं थी कि अचानक सामने से एक ट्रेन आती नजर आई। ट्रेन बिलकुल पास पहुँच चुकी थी। अंजुम तो ट्रैक पार कर चुकी थी पर सहेलियाँ पीछे थीं।

अंजुम खतरा साफ देख रही थी। वे झपट कर पीछे मुड़ी और उन्हें बचने की चेतावनी देते हुए एक सहेली को पकड़ कर पीछे खींच लिया। ट्रेन पास से गुजर गयी और बाकी पाँच सहेलियाँ उसकी चपेट में आ गयी। एक पल की भी देर होने पर वह और उसकी सहेली भी शिकार बन जाती।

अंजुम के पिता भारत इलेक्ट्राॅनिक्स लिमिटेड में काम करते हैं। उनकी इस बहादुरी के लिए भारत इलेक्ट्रोनिक्स आॅफिसर्स क्लब और उसकी महिला शाखा ने अंजुम को पुरस्कृत किया है।

आसाधारण साहस और बहादुरी के लिए उत्तर प्रदेष की कुमारी अंजुम को
गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की विषेष शारीरिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।


गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स

क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड

श्रेणी: शारीरिक बहादुरी

बहादुरी का संक्षिप्त विवरणः

मुम्बई-दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस में रसोई इन्चार्ज और आईआरसीटीसी के कर्मचारी, श्री पवन कुमार की सूझबूझ, तुरन्त और बहादुरी भरी कार्यवाही ने 18 अप्रैल 2011 को 150 यात्रियों को मौत के मुँह से सुरक्षित निकाल लिया।

राजधानी एक्सप्रेस के तीन डिब्बों में तड़के भीषण आग लग गयी। आग रसोई घर से शुरू हुई थी। ट्रेन तेज गति से दौड़ी जा रही थी। यात्री दिन के पहले पहर में आराम से सो रहे थे। तभी श्री पवन कुमार को धुएँ का आभास हुआ। वे चैंक कर उठ बैठे, ट्रेन रोकने के लिए चैन खींची और फौरन अग्निशमन उपकरण की ओर हो लिए।

साथ ही, उन्होंने अपने साथियों को लोगों को उठाने के लिए कहा। जैसे ही ट्रेन रूकी वे रसोईघर की ओर हो लिए और आगे बुझाने में लग गए। उनका आत्म-विश्वास देखकर कुछ और लोग भी साथ हो लिए। आग बुझा दी गयी और सभी लोगों को सुरक्षित नीचे उतार लिया गया। इस आग में ट्रेन के 3 डिब्बे जल कर पूरी तरह तबाह हो गए।

अपनी जान की परवाह न कर अद्वितीय सूझबूझ और बहादुरी का परिचय देते हुए 150 से अधिक यात्रियों को सुरक्षित बचाने के लिए दिल्ली के श्री पवन कुमार को गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की शारीरिक श्रेणी में विशेष पुरस्कार प्रदान किया जाता है।

गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार

क्षेत्र    ः    दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी    ः    सामाजिक बहादुरी

सामाजिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण:
मोहम्मद शरीफ गरीब और जरूरतमंद लोगों के मसीहा हैं। उन्होंने अपना जीवन अस्पतालों में गरीब मरीजों की सेवा में समर्पित कर दिया है। पेशे से साइकिल मैकेनिकल, मोहम्मद शरीफ ने दुःख को करीब से महसूस किया है। उनका बेटा मृत्यु से एक माह पूर्व गायब हो गया था। अतः वह उसका अंतिम संस्कार तक नहीं कर सके।

इस दुखद घटना ने उन्हें और अधिक शक्ति दी। उन्होंने फैसला किया कि अब कोई गुमनामी की मौत नहीं मरेगा।

वे अपने काम और लोगों की सेवा में जुट गए। मोहम्मद शरीफ रोज प्रातः 5 बजे उठते हैं और नगर अस्पताल जाकर उन सभी मरीजों को नहलाते हैं जिनकी देखरेख करने के लिए उनके परिवार का कोई सदस्य उपस्थित नहीं होता है। वे इन मरीजों को दवाई आदि देने में नर्स की पूरी सहायता करते हैं। मोहम्मद शरीफ अस्पताल के कर्मचारियों का एक भाग बन चुके हैं।

अस्पताल से निकल कर वे साइकिलों की मरम्मत करने का अपना कार्य करते हैं और अपनी दुकान बंद करने के बाद फिर अस्पताल वापस लौट आते हैं तथा देर रात तक मरीजों की सेवा करते हैं।
मोहम्मद शरीफ ने शहर में ऐसी सभी लाशों का अंतिम संस्कार करने का उत्तरदायित्व भी लिया है जिनका कोई दावेदार नहीं है। उनके लिए मृतक के का धर्म का कोई मतलब नहीं है।
वे अपने इस सामाजिक कार्य के लिए लोगों से चन्दा इकट्ठा करते हैं। रमज़ान महीने में तो वह ज़कात जमा करने के लिए विशेष प्रयास करते हैं।

उत्तर प्रदेष के मोहम्मद शरीफ को गरीब तथा जरूरतमंद रोगियों की निःस्वार्थ सेवा के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की सामाजिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।

गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र    ः    दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी    ः    सामाजिक बहादुरी

सामाजिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण:
प्रो. अजय सिंह रावत सदा से न्याय के लिए लड़ाई करते रहे हैं। उन्होंने पर्यावरण सुरक्षा के उद्देश्य से भवन निर्माण, खनन और वन माफिया से भी टक्कर ली है।

शिक्षाविद तथा सामाजिक कार्यकर्ता, श्री रावत ने नैनीताल तथा नैनी झील को पर्यावरण की दृष्टि से बर्बाद होने से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

उन्होंने उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की, जिसके परिणामस्वरूप नैनीताल में बहुमंजिली इमारतें बनाने पर रोक लगा दी गई और 499 लोगों को इसके लिए दण्डित भी किया गया। प्रो. रावत के सतत प्रयासों के परिणामस्वरूप नैनी झील की सफाई की गई और ठण्डी सड़क को पैदल चलने वालों के मार्ग के रूप में तैयार किया गया। यही नहीं, निहाल नदी के पास गैर-कानूनी खनन कार्यों पर भी रोक लगाई गई।

वे अपने लेखों से पर्यावरण सुरक्षा के संबंध में लोगों में निरन्तर जागरूकता लाते रहे हैं। उन्हें वन इतिहास के क्षेत्र में दो राष्ट्रीय फैलोशिप भी प्रदान की गई हैं। श्री रावत अपने छात्रों, वन विभाग, पुलिस और जिला प्रशासन के सहयोग से वृक्षारोपण के क्षेत्र में भी आगे रहे हैं।

उत्तराखण्ड के प्रो. अजय सिंह रावत को पर्यावरण संरक्षण के प्रति उनकी निष्ठा के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की सामाजिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।

गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार

क्षेत्र    ः    दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी    ः    सामाजिक बहादुरी

सामाजिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण:
इन्हें उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के रोठा गांव में मदर टेरेसा के नाम से जाना जाता है। मृदु भाषी, कुमारी नीरज ने एक ऐसे स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया है जहां न तो कोई अध्यापक था, न ही किसी प्रकार की सुविधा। इस स्कूल को लोग ”अनाथ स्कूल“ के तौर पर जानते थे।

वे गांव की उन गिनी-चुनी लड़कियों में से एक हैं जो कभी स्कूल गईं थीं। गांव वालों की लगातार मांग पर दो वर्ष पूर्व उनके गांव में एक स्कूल खोला गया लेकिन कोई अध्यापक वहां तक नहीं पहुंचा। स्कूल में ताला लगा रहा।

सुश्री नीरज ने कुछ कर गुजरने का फैसला किया। वे आगे बढ़ीं और ताला खोल स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। इस कार्य में मदद के लिए न तो किसी गैर-सरकारी संगठन और न ही सरकार ने उनका हाथ थामा। फिर भी, नीरज अपने मिशन में आगे बढ़ती रहीं। वे हर रोज जल्दी स्कूल पहुंचती हैं और बच्चों के आने से पहले खुद साफ-सफाई भी करती हैं।
बच्चे खुश हैं। वे उन्हें खुशी से मदर टेरेसा कहते हैं। दरअसल, उन्होंने ही तो बच्चों को मदर टेरेसा के बारे में बताया है।

उत्तर प्रदेष की सुश्री नीरज को शिक्षा के प्रसार के लिए किए जा रहे कार्यों तथा उनकी निःस्वार्थ सेवा भावना के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की सामाजिक बहादुरी श्रेणी में विषेष पुरस्कार से पुरस्कृत किया जाता है।

गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स

क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड

श्रेणी: सामाजिक बहादुरी

बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:

समाज सेवा ही दीपक कुमार का धर्म है। वे स्टेट बैंक आॅफ इण्डिया में स्थायी कर्मचारी हैं और नियमित रूप से रक्त दान कर समाज की सेवा कर रहे हैं। श्री दीपक कुमार 31 अगस्त 1979 से 01 जनवरी 2011 तक 113 बार रक्त दान कर चुके हैं।

श्री दीपक 15 साल की उम्र से ही रक्त दान करते रहे हैं। कहा जाता है कि वे सबसे कम उम्र के रक्त दाता हैं।

वे कई संस्थाओं के सदस्य और लिमका बुक आॅफ रिकाॅर्ड्स, 2004 के राष्ट्रीय रिकाॅर्ड होल्डर भी हैं।

वे अपनी समाज सेवा के लिए कई पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।

रक्तदान द्वारा मानव जाति के प्रति उनकी सेवाओं का सम्मान करते हुए दिल्ली के  श्री दीपक कुमार को गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों की सामाजिक बहादुरी श्रेणी में पुरस्कृत किया जाता है।

गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कार
क्षेत्र    ः    दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड
श्रेणी    ः    माइण्ड आॅफ स्टील
बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:

संतोष सिंह नेगी के जन्म से ही अंग छोटे तथा कमजोर थे। उनका जीवन संघर्षों से भरा है। उन्होंने स्वयं को किसी से कम नहीं माना और उच्च शिक्षा प्राप्त कर सम्मान से अपना जीवन व्यतीत किया।

वे 10 वर्ष के थे कि उन्हें अपने परिवार के मुखिया की भूमिका निभानी पड़ी। उनके पिता सेना की ड्यूटी में उनसे बहुत दूर थे और बीमार मां बिस्तर पर थी। उनका एक छोटा भाई भी था।
दो वर्ष पश्चात उनकी माता का देहान्त हो गया और पिता भी सेवानिवृत्त हो गए। नियमित आय का कोई साधन न था, अतः श्री नेगी ने अपने परिवार का पालन करने तथा अपनी तथा अपने भाई की शिक्षा पूरी करने के लिए ट्यूशन देना शुरू किया।

वे बारहवीं कक्षा में ही थे कि उन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य इंजीनियरी परीक्षा पास की। लेकिन पैसे के अभाव में इंजीनियरी की शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके और बीएससी पाठ्यक्रम में प्रवेश पा लिया। इस दौरान वे अपने परिवार का पोषण करने के लिए ट्यूशन देते रहे।

उन्होंने भौतिकी शास्त्र में एमएससी और फिर बीएड की उपाधि प्राप्त की तथा आकाशवाणी, नजीबाबाद में कार्यक्रम देने लगे। वे राजीव गांधी स्नातकोत्तर छात्रवृत्ति के लिए भी चुने गए।
आज वे राॅयल इंटर काॅलेज, भैराकुण्ड में विज्ञान के प्रोफेसर हैं। उनके छात्रों के परीक्षा परिणाम उनकी योग्यता का प्रमाण है।

उनका भाई पीएचडी कर रहा है। श्री नेगी का सफर अभी समाप्त नहीं हुआ है। वे अर्थशास्त्र में एमए और एमबीए के पाठ्यक्रम में भाग ले रहे हैं तथा आईएएस की तैयारी कर रहे हैं।
उत्तराखण्ड के श्री संतोष सिंह नेगी को अपनी सभी शारीरिक कमजोरियों और कठिनाइयों के बावजूद शान से अपने पैरों पर खड़े होने के लिए गाॅडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों के अन्तर्गत माइण्ड आॅफ स्टील पुरस्कार प्रदान किया जाता है।

गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स
क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड

श्रेणी: अमोदिनी पुरस्कार

बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:

गैर-सरकारी संगठन, पहल ने उत्तराखण्ड ने स्वयं सहायता समूह के गठन के क्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त करने के साथ-साथ महिलाओं को आत्म-निर्भर बनाने के लिए छोटे-छोटे ऋणों की व्यवस्था करने में भी अपार सफलता प्राप्त की है।

1974-75 में गठित इस गैर-सरकारी संस्था ने शुरू में गदी बस्ती की 10 महिलाओं को 8000 रुपये के ऋण दिलवा कर अपना काम शुरू किया। समय बीतता गया और पहल सफलता की नई-नई सीढ़ीयाँ चढ़ती गयी। इस समय यह छोटी बचत के क्षेत्र में राज्य की सबसे बड़ी संस्था है।

इसके अन्तर्गत 537 स्वयं सेवा समूह काम कर रहे हैं और इसने 6000 महिलाओं को 5 करोड़ से भी अधिक के ऋण दिलवाए हैं।

पहल के अध्यक्ष श्री इस्लाम हुसैन ने यह संस्था पर्यावरण संबंधी मामलों के लिए शुरू की थी। 1994 में इसने महिलाओं के जीवन-यापन पर ध्यान देना शुरू किया और 25 महिलाओं को एचएमटी में नौकरी दिलाई गयी। यह कामयाबी से उत्साहित हो संस्था ने गन्दी बस्तियों की 10-10 महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनाने शुरू किए। इस समय पहल अपने स्वयं सेवा समूहों की संख्या बढ़ाकर अगले 2 सालों में 10,000 करने की योजना पर काम कर रही है।

महिलाआ सशक्तिकरण की दिशा में किए जा रहे कार्यों के लिए उत्तराखण्ड की गैर-सरकारी संस्था, पहल को गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों का अमोदिनी पुरस्कार प्रदान किया जाता है।

गोडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड्स

क्षेत्र: दिल्ली, उत्तर प्रदेष, उत्तराखण्ड

श्रेणी: अमोदिनी विषेष पुरस्कार

बहादुरी का संक्षिप्त विवरण:

गुलाबी गैंग उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में महिलाओं को न्याय दिलाने, घरेलू हिंसा से बचाने और समाज की कुरीतियों को दूर करने में महत्त्वपूर्ण योगदान कर रहा है।

गत अनेक वर्षों से यह गैर-सरकारी संस्था रूढ़ीवादी परम्पराओं, जातिवाद, महिला निरक्षरता, घरेलू हिंसा, बाल श्रम, बाल-विवाह व दहेह प्रथा के खिलाफ आवाज उठा रही है।

संस्था की स्थापना पुरुष उत्पीड़न से औरतों को बचाने के लिए की गयी थी। लेकिन अब यह संस्था घर-घर जा कर परिवारों से अपनी लड़कियों को स्कूल भेजने को कहती है और औरतों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है।

आज गुलाबी गैंग की हजारों महिला सदस्य है। संस्था के उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए अनेक पुरूष भी अभियान में शामिल हो गए हैं। बात चाहे सार्वजनिक वितरण व्यवस्था की हो या वृद्ध महिलाओं को पेंशन की, गुलाबी गैंग को आप सदा आगे पायेंगे।

जहाँ भी किसी पुरूष द्वारा किसी महिला के शोषण की बात सामने आती है, गैंग के सदस्य सामने आकर समझाते-बुझाते हैं और जरूरत पड़ने पर पुरुष की जग हँसाई करने से भी नहीं चूकते।

महिला सशक्तिकरण तथा महिलाओं को अपने अधिकार दिलवाने के लिए चलाये जा रहे अभियान के लिए उत्तर प्रदेश की गैर-सरकारी संस्था, गुलाबी गैंग को गोडफ्रे फिलिप्स बहादुरी पुरस्कारों का विषेष अमोदिनी पुरस्कार प्रदान किया जाता है।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

Comments (0)

शिक्षा से ही होगा हर गरीब मजदूर का विकास - सी0डी0ओ0

Posted on 03 May 2011 by admin

मानव जाति की खुशहाली के लिए मई दिवस हमें सघर्षशील बनाता है

भूमि कब्जा, पेयजल, संपर्कमार्ग, जाबकार्ड, राशनकार्ड के छाये रहे मुददे

कवि सम्मेलन के माध्यम से रचनाकारों ने जागरूक किया मजदूरों को

विश्व मजदूर दिवस पर गरीबी के अंतिम पायदान पर जूझ रहे, सहरिया आदिवासियों ने बढ़चढ़कर लिया हिस्सा

ललितपुर -जनपद के सर्वाधिक पिछड़े मड़ावरा ब्लाक में बुन्देलखण्ड सेवा संस्थान, चिनगारी संगठन, सहरिया जन अधिकार मंच एवं रोजगार हक अभियान के तत्वाधान में विश्व मजदूर दिवस के अवसर पर खेतिहर एवं जाबकार्ड धारक मजदूर सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मुख्य विकास अधिकारी बुद्विराम एवं विशिष्ठ अतिथि परियोजना निदेशक राजीव लोचन पाण्डेय, उपजिलाधिकारी महरौनी आर.के. श्रीवास्तव रहे। गांव-गांव से आये सहरिया आदिवासी मजदूरों ने शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, बिजली, सम्पर्क मार्ग, आवास, राशन कार्ड, पटटा भूमि कब्जा वंचित, आजीविका, यातायात आदि से संबंधित मुद्दों को दूर-दूर के गांवों से आये हजारों की संख्या में महिला-पुरूषों ने प्रार्थना-पत्रों के माध्यम से अपनी-अपनी बात रखी जिस पर अधिकारियों ने एक सप्ताह के अंदर समस्याओं के निराकण का आश्वासन दिया।
ब्लाक मुख्यालय परिसर में आयोजित विश्व मजदूर दिवस के अवसर पर खेतिहर एवं जाबकार्ड धारक मजदूर सम्मेलन में मुख्य अतिथि मुख्य विकास अधिकारी बुद्विराम ने कहा कि शिक्षा विकास के हर रास्ते प्रसस्त करती है। कहा कि जरा अपने बारे में सोचिये, देश को आजाद हुए एक लम्बा अरसा बीत गया किन्तु इसके बाद भी आप लोग वैसे के वैसे क्यों हैं। अपने बच्चों को पढायें तभी सही मायने में विकास की धारा से जुड सकेंगेे। मैं भी गरीब का बेटा हूं। गरीब हैं तो गरीबी कैसे कम हो इसके बारे में चिंतन करना होगा। सरकार की योजनाओं की सही जानकारी हो और सही लाभ मिले इसके लिए जागरूकता कार्यक्रमों में आकर सुनना और उनका अनुपालन करना सीखना होगा। बच्चों को शिक्षित करने पर ही गरीबी कम होगी। जब बच्चा पढ जायेगा तो उसकी नौकरी लग सकती है एवं वह जहां भी रहेगा अपने रोजी रोटी की व्यवस्था कर लेगा तथा जब उसका पेट भरेगा तभी वह अपने मां बाप एवं अन्य के बारे में सोचेगा। इसलिए यदि जीवन में खुशहाली लाना है तो शिक्षा को अपना कर अपने घरों को रोशन करें। कहा कि आवास का पैसा सीधे लाभार्थी के खाते में आता है, यदि कोई कोई अधिकारी समय से पैसा नहीं निकालता या फिर पैसा मांगता है तो उसकी सिकायत करें, कार्यवाही की जायेगी। कई जगह लाभार्थी आवास का पैसा निकालकर खा जाते है और आवास अधूरा पडा रहता है इसलिए आप लोग आवास का पैसा आवास में ही खर्च करें और समय से कार्य पूरा कराके गांव एवं जिले की तरक्की में सहयोग करें। जो गांव अम्बेडकर गांव में आ गये हैं वहां पर कोई भी गरीब आवास से वंचित नहीं होगा।
परियोजना निदेशक राजीव लोचन पाण्डेय ने कहा कि मजदूर अपने जाबकार्ड का महत्व समझें। साल मे 100 दिन का रोजगार का मतलब है कि गरीब को 10000 रू0 का काम मिलना ही है, जिससे कोई भी परिवार न तो पलायन करेगा और न ही भूखों मरेगा। वैसे तो हर गांव में काम चल रहे हैं किन्तु यदि किसी गांव में काम बंद है या फिर काम नहीं मिल रहा तो काम की मांग करे, फोन पर या फिर पत्र द्वारा सूचना दें, उन्हें तत्काल काम दिलाया जायेगा। कहा कि बुन्देलखण्ड मे मजदूर को सिर्फ 60 घन फिट मिटटी ही निकालनी पडती है इसके बाद भी लोग सही तरीके से काम नहीं करते हैं। आधा अधूरा काम करते हैं जिससे जब एमबी बनती है तो कम पैसा निकलता है, इसलिए आप लोग पूरा काम करें, और पूरी मजदूरी लें तभी बदलाव आयेगा। यदि मजदूरी मिलने में किसी कारण से विलम्ब हो रहा है तो संबंधित विकास अधिकारियों को अवगत करायें।
उपजिलाधिकारी आर.के. श्रीवास्तव ने कहा कि पटटा भूमि कब्जा से वंचित परिवारों को हर दशा में उनकी जमीन में उनकों कब्जा दिलाया जायेगा। कहा कि लेखपालों को संबंधित गांवों में लगाकर सहरिया आदिवासी परिवारों को कब्जा दिलाया जायेगा। जो दबंग जमीनों का कब्जा नहीं छोडेंने का प्रयास करेंगें उनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर कब्जा दिलाया जायेगा। कहा कि आप लोग फोन या फिर लिखित में पत्र देकर अवगत करायें तत्काल कार्यवाही कर समस्या का निराकरण किया जायेगा।
अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के संस्थापक वरिष्ठ समाज सेवी गोपाल भाई ने कहा कि बुन्देलखण्ड में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। चाहे कवि हों या फिर मृदंग वादक, लोककलाओं के धनी इस क्षेत्र की सम्पदाओं का दोहन करके यहां के लोगों को गरीब बनाया गया है। प्राकृतिक संतुलन को विगाड़कर हम बडे़-बड़े भवन खडे कर रहे हैं। जिससे बडे-बडे पहाड एवं वृक्ष नष्ट हो रहें है। पहाडों को खनन की परमीसन भी जिम्मेदार अधिकारी ही देते हैं। इसलिए इसपर गहन चिंतन की जरूरत है। इतिहास में जिस प्रकार से कवियों ने जागरूकता के लिए कवितायें लिखकर लोगों को जगाने का काम किया था आज जरूरत फिर से है कि कविताओं के माध्यम से समाज को जगाया जाये तभी समस्याओं के निराकरण की हम बात कर सकते हैं।
नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो0 भगवतनारायण शर्मा ने ठेट बुन्देली बोली में अपने उदगार व्यक्त करते हुए जनजाति समुदाय से सीधा संवाद किया। उन्होंने कहा कि मानव जाति की खुशहाली के लिए मई दिवस हमें सघर्षशील बनाता है। कहा कि वेतन भोगी संगठित क्षेत्र में सिर्फ 2.6 करोड़ कर्मचारी ही आते हैं, पर खंेतिहर मजदूर गरीब किसान, निर्माण मजदूर, शिल्पकार आदि वंचितजनों जिनकी तादाद 80 करोड़ है अंसगठित क्षेत्र में माने जाते हैं, परन्तु देश की सकल आय ‘‘जी.डी.पी.‘‘ में इनका हिस्सा 50 प्रतिशत से अधिक है यदि इन करोडों बेजुबानों द्वारा अर्जिम राष्ट्रीय आय का एक प्रतिशत हिस्सा ईमानदारी से खर्च किया जाये तो न जाने कितने मुरझाये चेहरों पर मुस्कान खिल सकती हैं। कितने ही सूखे खेतों में रूठी हरियाली दौड़ सकती है, परन्तु पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से लेकर युवा नेता राहुल गांधी तक आते-आते अभी यह तयं ही नहीं हो पा रहा है कि 5 पैसे से लेकर 15 पैसे तक जरूरतमंदों के जेबों तक क्यों पहुंच रहे हैं, और 85 प्रतिशत धन किसकी जेब में पहुंच रहा है। प्रो0 शर्मा ने आगे कहा कि जिस दिन असंगठित क्षेत्र के श्रमिक संगठित हो जायेंगें उस दिन निर्माण और विकास का आदेश दिल्ली और लखनऊ से न आकर ग्रामीण धरातल से नीचे से उपर की ओर जाने लगेगा और सिर के बल खड़ा तंत्र अपने पावों के बल पर खड़ा हो जायेगा, बसर्ते कि दायें-बायें देखे बिना कोटि-कोटि मजदूर परस्पर संगठित रहने के सत्य पर अपनी अर्जुन दृष्टि जमायें रहें। एक का दुःख सबका दुःख की भावना से प्रेरित विश्व मजदूर दिवस अपने गर्भ में विराट सामाजिक रूपांतरण की प्रजण्ड शक्ति धारण किये है। ये मानव जाति की खुशहाली के लिए हमें सतत संघर्षशील बनाती है।
बुन्देलखण्ड सेवा संस्थान के मंत्री वासुदेव ने कहा कि 1 मई 1886 को अमेरिका के सबसे बडे़ औद्योगिक नगर केन्द्र शिकागों में 8 घण्टें के कार्य दिवस तथा मजदूरों की बेहतर कार्य दशाओं की मांग को लेकर शांती पूर्वक की जाने वाली हड़ताल के क्रम में उतपीड़क नियोक्ता उद्योगपतियों की शह पर जिन 7 निर्दोष मजदूर नेताओं को न्यायिक प्रक्रिया का स्वां्रग रचाते हुए जिस प्रकार निर्ममता पूर्वक फंासी पर चढ़ा दिया गया उन्हीं शहीदों की याद पर आयोजित विश्व मजदूर दिवस में मडावरा क्षेत्र के दूर दराज के गांवों के लोगों ने आकर अपनी एक जुटता एवं भाई चारे का प्रर्दशन किया है। यह ऐतिहासिक घटना है। अब इस क्षेत्र का गरीब मजदूर जागरूक एवं संगठन की राह पर चल पड़ा है
चिनगारी संगठन के अर्जुन सहरिया ने समस्याओं का सात सूत्रीय ज्ञापन सी0डी0ओ0 एवं उपजिलाधिकारी को सौंपते हुए कहा कि मडावरा ब्लाक जिले का सर्वाधिक पिछडा ब्लाक है जहाॅ पर शिक्षा साक्षरता का प्रतिशत बहुत कम है । यहाॅ दलित, सहरिया, गौड आदिवासी सुदूर जंगलो में बसे है जिसके कारण शिक्षा स्वास्थ्य, आजीविका, यातायात, पानी बिजली के सुविधाओ से वंचित है कुर्रट, लखंजर, नीमखेडा जैसे एक दर्जन गाॅव वन विभाग के कडे कानूनो के कारण सर्वागीण विकास से नही जुड पा रहे है। बच्चे तथा महिलाऐ अमानवीय जीवन जीने को मजबूर है। सहरिया आदिवासी परिवारों के गरीबी रेखा से ऊपर उठने में कृषि आधारित आजीविका का प्रमुख आधार भूमि है। सरकार द्वारा दिये गये पट्टे की भूमि में आज भी गरीब आदिवासी को कब्जा नही मिल रहा पा रहा है। उच्चाधिकारियों के  आदेशों का पालन स्थानीय लेखपाल सही ढ़ग से नही करते है। मडावरा क्षेत्र के 22 गावों के 101 पट्टेदारो की भूमि में उनको अब तक कब्जा नही मिल पा रहा है भूमि माप एंव कब्जा दिलाओ अभियान चलाकर कब्जा दिलाया जाये। इसके साथ ही सभी भूमिहीनों को आवासीय पट्टा अनिवार्य रूप से दिया जाये। जिन अनुसूचित जाति एंव जनजाति के लोगों के पास आवासीय भूमि नही के बराबर है, उसे आवासीय जमीन खरीद कर पट्टा दिया जाये। 10 वर्ष पुरानें पटटेदारों को जो भूिमधर बन चुके है और उनको अब तक मौके में खेत पर कब्जा नही मिला उसे भी मौके में कब्जा दिलाया जायें। वर्तमान में लेखपाल पुराने पटटेदारो को भूमिधर घोषित होने पर कब्जा नही दिलातें है। गरीबो को हदबन्दी दायर करने को लेखपाल प्रेरित करते है यह प्रक्रिया गरीबो के लिये काफी खर्चीली है। 5-10 हजार रू0 तहसील में जमा करना होता है। ग्राम सभा में तालाबों के पटटे गरीब आदिवासी परिवारो को तथा ढीमर परिवारो को मछली पालन के लिए दिये जायें। जिस ग्राम सभा की जमीन पर जिस भूमिहीन का कब्जा 1 मई 2007 से है, उसका उस जमीन पर 122 बी 4 एफ, वह 123 एक के आधार पर नाम दर्ज किये जायें। मडावरा ब्लाक में 132 प्राईमरी एंव 76 जूनियर विद्यालय है इन विद्यालयो में शिक्षको की कमी है जिससे बच्चों की पढाई ठीक से नही हो पा रही है। 18 प्राईमरी विद्यालय मे 18 शिक्षामित्र नही है और 5 विद्यालयो में शिक्षको का अभाव है। तीन जूनियर विद्यालयों मे अध्यापक नही है जिससे  सहरिया आदिवासी गरीब दलित बच्चे सबसे अधिक प्रभावित है मिडडे-मील भी समुचित ढंग से नही मिलता है आदिवासी बच्चो  के साथ भेदभाव किया जाता है।
घनघोर जंगल के बीच बसे गावों के लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। जंगल के गांव लखंजर, पापरा, ठनगना, बारई, कुर्रट, जैतुपुरा, आदि के बच्चे तथा महिलाऐं स्वास्थ्य सुविधा से वंचित है। गर्मी और बरसात में मौसमी बीमारिया फैल जाती है कई दुखद घटनाऐं घट जाती है।
अप्रैल माह में किये गये सर्वेक्षण के आधार पर मडावरा ब्लाक के कुल 43 गावों के 432 हैण्डपम्पो में से 99 हैण्डपम्पों ने पानी देना बन्द कर दिया है। इसी प्रकार कुल 224 कुओं में से 98 कुऐं बेकार हो गये है। क्षेत्र में पेयजल संकट समाप्त करने हेतु हैण्डपम्पो को ठीक कराने तथा कुओ की मरम्मत कराने की अत्यन्त आवश्यकता है। ब्लाक के 23 गावों में जिनमे से हनुमतगढ, जलंधर, खैरपुरा, गिरार, विरोंदा, बम्हौरीखुर्द, मानपुरा, गरौलीमाफ, हीरापुर, टपरियन, बडवार, परसाटा, टोरी, सकरा, सागर, टौडीखैरा, हसेरा, सोरई सीरोन, कुर्रट, जैतुपुरा, ठनगना, हीरापुर में मनरेगा के माध्यम से कोई काम नही चल रहा है जिसके कारण गरीब लोग परेशान हैं। 5 ग्राम गरौली माफ, धौरीसागर, टोरी, हसेरा, जैतुपुरा की कुल 35 परिवारो की मजदूरी अभी तक शेष है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्र्तगत मडावरा ब्लाक के 18 गाॅव यथा हनुमतगढ, जलंधर, खैरपुरा, इमलिया, विरोंदा, बम्हौरीखुर्द, नीमखेडा, परसाटा, धौरीसागर, सेमरखेडा, सकरा, सागर, भौती, सीरौन, मदनपुर, दलपतपुर, जैतुपुरा, सोल्दा में राशन कार्ड धारको कों सस्ता अनाज गेहू, चावल, मिटटी का तेल, नही मिल पा रहा है। कोटेदार गरीबों की सामाग्री उन्हे नही दे रहे है।
सम्मेलन में खण्ड विकास अधिकारी एम.के. दीक्षित, देवब्रत क्षेत्रीय प्रबंधक एक्शन एड लखनऊ, समीनाबानों पी.ओ. एक्शन एड लखनऊ, चिनगारी संगठन की शीलरानी सहरिया, सरजूबाई रैकवार, अजय श्रीवास्तव साईं ज्योति, संजय सिंह परमार्थ, मनोज कुमार कृति शोध संस्थान महोबा, सहरोज फातिमा चित्रकूट, बुन्देलखण्ड सेवा संस्थान के मानसिंह, रनवीर सिंह, राहत जहां, कौशर जहां, ऊषा सेन, श्रीराम कुशवाहा, मईयादीन, अनिल तिवारी,, बृजलाल कुशवाहा आदि मौजूद रहे। सुरक्षा की दृष्टिकोंण से थानाध्यक्ष मडावरा शमीम खांन कार्यक्रम में मौजूद रहे।

‘‘खुद झोपडी में रहते औरों के घर बनाते, मजदूर धूप में भी अपना लहू बहाते‘‘

विश्व मजदूर दिवस के अवसर पर खेतिहर एवं जाबकार्ड धाराक मजदूर सम्मेलन साहित्यक संस्था हिन्दी उर्दू अदबी संगम द्वारा कवि सम्मेलन एवं मुषायरे के द्वारा कवियों एवं रचाकारों द्वारा कविताओं के माध्यम से मजदूरों को जागरूक करने का काम किया गया। एडवोकेट रामकृष्ण कुशवाहा ने कहा कि पेट्रोल बनकर लहू मजदूरों का जलता है, तरक्की का रास्ता मेहनत से निकलता है, गरीबी का अहसास कहां है अमीरों को, मजदूरों के घर में चूल्हा कैसे जलता है। मु0 शकील साहब ने कहा कि खुद झोपडी में रहते औरों के घर बनाते, मजदूर धूप में भी अपना लहू बहाते। रचनाकार हरिनारायण पटेल ने कहा कि जागों ये मजदूर किसानों, वक्त गुजरता जायेगा, हम जग के हर दुखयारे को , नया संदेशा लायेगें। कवि किशन सिंह बंजारा ने कहा कि भाई बहिनों पेड लगायें, एक नहीं दो चार लगायें, इन्हें देखकर लोगों के मन में भी होगा विचार, लगाओ पेड़ खुशी से यार। अख्तर जलील अख्तर ने कहा कि अख्तर किसी की भूख की शिददत तो देखिये, कपडों में कोई पेट का पत्थर छिपाये हैं। शायर नंदलाल पहलवान ने कहा कि गरीब भी मजदूर भी बन सकता है हाकिम, बाबा साहब ने ऐसा करके दिखा दिया। कवि दशरथ पटेल ने कहा कि जाओ देखो भारत की तस्वीर, कोऊ खां न मिलहें सूखी रोटी, कोऊ कोऊ खाये खीर, कोऊ खों नैया मठा महेरी, कोऊ खाये दूध पनीर, जा देखौं भारत की तस्वीर। शिखरचंद मुफलिस ने कहा कि कौन मां के पेट से लाया तिजोडी, नग्न दफनाये गये लाला, करोडी। कवियों की जागरूगता की रचनाओं ने क्षेत्रीय लोगों को नयी ऊर्जा देने का काम किया, जिन्हें लोगों ने खूब सराहा। सम्मेलन में कवि किशन सिंह बंजारा, गीतकार हरीनारायण पटेल, शायर मोहम्मद शकील, कालूराम कुशवाहा, कवि दशरथ पटेल, अख्तर जलील अख्तर, शायर नंदलाल पहलवान, शिखर चंद्र मुफलिस, रामकिशन सिंह कुशवाहा आदि ने रचनाओं के माध्यम से सशक्त करने का काम किया।

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

Comments (0)

111 निर्धन कन्याओं का विवाह सांसद व विधायक ने कराया सम्पन्न

Posted on 03 May 2011 by admin

सुलतानपुर - राजर्षि रणंजय सिंह जन कल्याण समिति के तत्वाधान में कल रात नगर के महात्मा गांधी स्मारक इण्टर कालेज में सामूहिक विवाह का आयोजन किया गया। जिसमें पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं  सदर सांसद डाॅ. संजय सिंह व अमेठी विधायिक अमीता सिंह सुलतानपुर और छत्रपति शाहूजी महराज नगर से विभिन्न जातियों के गरीब व निर्धन चयनित 111 कन्याओं का कन्यादान किया। कन्याओं के साथ विधायक अमीता सिंह और वर के साथ सांसद डाॅ. संजय सिंह ने विवाहोत्सव की सम्पूर्ण वैवाहिक कार्यक्रमों की व्यवस्था करते दिखाई पड़े। कार्यक्रमा अनुसार 111 दुल्हों की बारात पं. रामनरेश त्रिपाठी सभागार से बारातियों को जलपान कराये जाने के बाद बैण्डबाजे के साथ डाॅ0 संजय सिंह की अगुवाई में निकली। विवाह की बेदी पर कन्याओं के साथ विधायक. अमीता सिंह पहुंची और दोनों पक्षों के माता-पिता की मोजूदगी में समस्त वैवाहिक कार्यक्रम सम्पन्न कराये। दहेज की विभीषिका, निर्धन माता-पिता की विपन्नता एवं उनकी बेटियों की विवशता को समिति की अध्यक्ष अमीता सिंह ने बहुत गहराई  तक महसूस किया और उन्हें राहत पहुंचाने एवं उनकी बेटियों के उज्जवल भविष्य के लिए सामूहिक विवाह का सूत्रपात किया। उपरोक्त  संस्था सामूहिक विवाह के माध्यम से उन गरीब परिवारों की हर सम्भव मदद करना चाहती है।, जिन्हें अपनी पुत्री के विवाह में अपनी जमीन एवं अन्य सम्पत्तियों या तो गिरवी रखनी पड़ती है या बेंच देनी पड़ती हैं। निर्धन मां-बाप किसी तरह अपनी जमीन, जेवर बेंचकर  व कर्ज लेकर अपनी बेटी के हाथ पीले करते हैं तथा जीवन भर वर पक्ष के सामने हाथ जोडे़ खडे रहते है। इसके बावजूद न तो उसकी बेटी को ससुराल में सम्मान ही मिलता है, न ही उसे उसका अधिकार मिलता है। उसे शोषण का सामना करना पड़ता हैं। संस्था ऐसे गरीब परिवारों के विवाह का खर्च स्वयं वहन कर उन्हें अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए प्रोत्साहित  भी करती है।
संस्था की ओर से डाॅ. संजय सिंह व अमीता सिंह ने नव विवाहित जोड़ों  को सम्मानपूर्वक जीवन शुरू करने के लिए स्त्रीधन के रूप में भेंट स्वरूप घरेलू जीवन की सभी आवश्यक वस्तुएं-वर्तन, डबल बेड, बिस्तर सेट, साइकिल, कपड़े, सिलाई मशीन, टेबुल फैन, चांदी के आभूषण, घड़ी आदि अनेकों सामान दिये गए। इससे कन्या पक्ष को न तो अपने वर को दहेज देने की चिंता रही और न ही वर पक्ष को कन्या पक्ष की ओर से कुछ दहेज न मिलने की शिकायत रह गई। दोनो पक्ष इस व्यवस्था में अपने पुत्र और पुत्रियों की शादी को कराकर खुद को धन्य मान रहे हैं। पांचोपीरन के रामकुमार ने कहा कि उनकी उम्र में बहुत जनप्रतिनिधि आये और गए किसी ने ऐसा पुनीत कार्य नहीं किया। इस आयोजन ने गरीब-अमीर की शादी का अन्तर ही मिटा दिया। हमें खुशी इस बात की और हुई कि हमारे पुत्र बब्लू की शादी में समाज का  एक बड़ा प्रबुद्ध वर्ग कहे जाने वाला हर व्यक्ति शादी में शरीक हुआ है। हमारे बाराती भी धन्य हो गए जो उन्होंने 111 कन्याओं के सामूहिक विवाह के महायज्ञ में शामिल हुए।
कैप्सन- विवाह मण्डप  में  सांसद  संजय सिंह व विधायक  अमिता सिंह

सुरेन्द्र अग्निहोत्री
मो0 9415508695
upnewslive.com

Comments (0)


Advertise Here
Advertise Here

INFORMATION

  • Log in
  • Entries RSS
  • Comments RSS
-->





 Type in