उत्तर प्रदेष में उन्नाव, कानपुर व लखनऊ के करीब डेढ़ दर्जन साहित्यिक-सांस्कृतिक व सामाजिक संगठनों ने संयुक्त आयोजन समिति गठित कर जाने माने आलोचक, विचारक व डा0 रामविलास षर्मा एवम् मषहूर कथाकार सआदत हसन मण्टो की जन्म षताब्दी के इस दौर में वर्श भर की कार्यक्रम श्रंखला का आयोजन तय किया है। इस कार्यक्रम-श्रंखला की षुरूआत ‘डा0 राम विलास षर्मा (जिनकी सौवीं जयन्ती दस अक्टूबर 2012 को थी) जन्म षताब्दी षमारोह’ के रूप में 13-14 अक्टूबर 2012 को उन्नाव में दो दिवसीय आयोजन के साथ हुई ।(डा0 राम विलास षर्मा का जन्म 100वर्श पहले 10 अक्टूबर 1912 को उन्नाव की पुरवा तहसील के गाॅव ऊॅचगाॅव सानी में हुआ था)
कानपुर, लखनऊ षहर सहित उन्नाव के करीब डेढ़ दर्जन साहित्यिक, सास्ंकृतिक व सामाजिक सगंठनों की संयुक्त आयोजन समिति ने डा0 रामविलास षर्मा और सआदत हसन मण्टो के इस जन्म षताब्दी दौर में वर्श भर कार्यक्रमों आयोजनों की योजना बनाई है। आयोजन समिति ने ‘षताब्दी व्याख्यान समारोह’ में पारित प्रस्ताव- उॅचगाॅव सानी स्थित डा0 रामविलास जी का आवास राश्ट्रीय विरासत स्थल घोशित हो, इस प्रस्ताव पर व्यापक हस्ताक्षर अभियान जारी किया है। साथ ही समिति के घटक संगठनों के संयुक्त प्रयासों से ‘साहित्य लोक यात्रा’ तथा ‘षताब्दी व्याख्यान समारोह’ सहित अन्य संदर्भो को संकलित कर एक वृत्रचित्र तथा वृत्रिका पुस्तक संपादन का प्रस्ताव लिया है। आगे के दौर में समिति प्रकाषन के जरिये भी व्यापक तौर पर अपने सरोकारों को आयाम देगी। इसी कम्र में रिपोर्ट 1 जारी की जा रही है।
इस उद्घाटक आयोजन की षुरुआत 13 अक्टूबर 2012, षनिवार को महाप्राण निराला उद्यान, सिविल लाइन, उन्नाव, - निराला प्रतिमा पर पुश्पांजलि उपरान्त उन्नाव नगर से डा0 रामविलास षर्मा के जन्म स्थान-ऊॅचगाॅव सानी तक ‘साहित्य लोक यात्रा’ के आयोजन द्वारा हुई। यह ‘साहित्यिक लोक यात्रा ’ उन्नाव में जन्में हिन्दी के विख्यात साहित्यिकारों-रचनाकारों के जन्म-स्थलों से होकर गुजरी। उन्नाव जि़ले के बदरका (अमर षहीद क्राान्तिकारी चन्द्रषेखर आज़ाद की ननिहाल) होते हुए ‘साहित्यिक लोक यात्रा’ विख्यात कवि गया प्रसाद षुक्ल ‘सनेही’ के गाॅव हड़हा ;गद्य लेखक, नाटककार व सम्पादक प्रताप नारायण मिश्र के गाॅव बैजेगाॅव बेथर ;अवधी में हास्य-विधा के षीर्श कवि रमई काका के गाॅव रावतपुर के रास्ते डा0 षर्मा के गाॅव ऊॅचगाॅव सानी पहुॅची। ‘साहित्य लोक यात्रा’ में उन्नाव, कानपुर, लखनऊ के साहित्य-संस्कृति कर्मियों, साहित्यप्रेमियों और जनकर्मियों के साथ उद्घाटक आयोजन के अतिथि- राॅची से प्रख्यात आलोचक डा0 रविभूशण, नई दिल्ली से डा0 रामविलास षर्मा के पुत्र लेखक सम्पादक डा0 विजय मोहन षर्मा तथा कवि-लेखक सुरेष सलिल, एवम् हैदराबाद से कवि-लेखक-सम्पादक षषि नारायण ‘स्वाधीन’ षामिल थे।
डा0 रामविलास षर्मा के गाॅव ऊॅचगाॅव सानी में आयोजित जनसभा को सम्बोधित करते हुए डा0 रविभूशण(रांची) ने कहा कि हिन्दी साहित्य और आलोचना की दुनिया में डा0 रामविलास षर्मा का जो कद है, मौजूदा भारतीय राजनीति के अपने क्षेत्र में वैसा उन्नत कद आज के दौर के किसी भी राजनेता का नही है। स्वाधीन (हैदराबाद) ने अपने सम्बोधन में कहा कि डा0 षर्मा ने भाशा और साहित्य ही नही, वरन संगीत और स्थापत्य के कलाक्षेत्रों में मौलिक चिन्तन व रचनाकर्म किया। डा0 पंकज चतुर्वेदी (कानपुर) ने डा0 षर्मा द्वारा महाकवि निराला के अनूठे रचनाकर्म की समीक्षा व आलोचना को याद किया। डा0 विजय-मोहन षर्मा (नई दिल्ली) ने बताया कि रामबिलास जी ने जीवन में उन्हें मिले तमाम पुरस्कारों-सम्मानों की धनराषि षिक्षा के उन्नयन हेतु विभिन्न षिक्षा संस्थाओें को दे दी । उन्होनें जोर दिया कि हमारें गाॅवों में व्याप्त षिक्षा की दुर्दषा समाप्त होनी चाहिए। जनसभा के बाद ‘साहित्य लोक यात्रा’ ऊचगाॅव सानी से विख्यात आलोचक-लेखक आचार्य नन्ददुलारे-बाजपेई के गाॅव मगरायर और महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ के गाॅव गढ़ाकोला होते हुए वापस उन्नाव लौटी ।
13 अक्टूबर की षाम उन्नाव नगर स्थित कात्यायन गेस्ट हाउस में साहित्यकार-सम्वाद तथा डा0 षर्मा पर वृत्रचित्र का आयोजन हुआ। इस मौके पर डा0 विजय मोहन षर्मा द्वारा रामविलास जी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर इग्नू द्वारा निर्मित वृत्रचित्र ‘एक अडिग विष्वास ’तथा कुछ अन्य पारिवारिक चित्रों(वीडिओज)का प्रदर्षन किया गया। साहित्यकार सम्वाद में रामविलास जी द्वारा साहित्य, समाज, भाशा, इतिहास, दर्षन, संस्कृति, आलोचना, के विभिन्न क्षेत्रों में जो विपुल लेखन (100 से ज्यादा पुस्तकों के रुप में ) किया गया-उसके महत्व और प्रासॅगिकता पर विचार विमर्ष हुआ।
14अक्टूबर 2012 को उन्नाव के कात्यायन गेस्ट हाउस परिसर में ही ‘षताब्दी व्याख्यान समारोह’ का आयोजन हुआ। आयोजन की षुरुआत अतिथि-वक्ताओं के द्वारा संयुक्त आयोजन समिति के लिए कुमार दिनेष प्रियमन द्वारा तैयार किए गए डा0 रामविलास षर्मा पर, फोल्डर -…..‘केवल जलती मषाल’ …. के लोकार्पण के साथ हुई , जिसकी प्रस्तुति डा0 पकॅज चर्तुवेदी (कानपुर) द्वारा की गई।
व्याख्यान-विशय:‘षताब्दी के महान लेखक -विचारक डा0 रामविलास षर्मा:‘व्यक्ति और विचार’ पर बोलते हुए प्रख्यात आलोचक डा0 रवि भूशण ने रामविलास जी के बहुआयामी व्यक्तित्व और महत्व को रेंखाकिंत किया। उन्होनें कहा कि वह केवल अकादमिक दुनिया के व्यक्तित्व नही थे, उनका सरोकार भारतीय आमजन , समय के सवालो और चिन्ताओं से था । उनका सबसे बड़ा सपना था कि इस देष को कैसे बदला जाये और उसकी दिषा क्या हो। उन्होने कहा कि रामविलास जी के चिन्तन के मद्देनज़र उनकी जन्म षताब्दी को साम्ाज्यवाद और विदेषी पूंजी के प्रखर विरोध से देखना और याद करना चाहिये। साम्ाज्यवाद के सवाल पर उनके अनुसार डा0 रामविलास षर्मा एडवर्ड सईद व नाॅम चामस्की के साथ दुनिया के तीसरे चिन्तक-विचारक है। उन्नाव, कानपुर ,लखनऊ के विभिन्न संगठनो द्वारा इस आयोजन को प्रेरक बताते हुए उन्होने कहा कि उॅचगाॅव सानी स्थित डा0 रामविलास जी का आवास राश्ट्रीय विरासत स्थल घोशित हो, इसकी मांग उन्नाव की जनता व उनके जनप्रतिधि उत्तर प्रदेष व केन्द्र सरकार से पुरजोर ढगं से करे, इस मांग पर एक प्रस्ताव भी लाया गया।
डा0 विजय मोहन षर्मा ने याद दिलाया कि रामविलास जी जिस हिन्दी जाति की बात करते थे वह सभी हिन्दी बोलने वालों की है और उन्हें अपनी भाशा पर गर्व करना चाहिये। दुनिया के अन्य देषों में अपने साहित्यकारों रचनाकारों को सहेजनें और उनकी स्मृतियों, कृतियों को संरक्षित करने की जो परम्परा है, भारत और ख़ासकर हिन्दीपट्टी में नही है। इलाहाबाद विष्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के डा0 प्रणय कृश्ण (महासचिव -जनसंस्कृति मंच)ने अपने संबोधन में याद दिलाया कि डा0 रामविलास षर्मा ने अपने लेखन से यह महत्वपूर्ण सदेंष दिलाया था कि कोई भी देष उपनिवेषवादी जकड़न के साथ प्रगतिषील नही बन सकता और विदेषी पूॅजी से किसी देष समाज का विकास नही होता। उनके चिन्तन का यह महत्वपूर्ण पक्ष है। कि सत्रा मोह से बचना होगा लेकिन व्यवस्था को बदलना जरुरी है। उन्होने आगाह किया था कि गुलामी विदेषी पूजीं(मौजूदा दौर में एफ0डी0आई0) के जरिए केवल अर्थव्यवस्था में ही नही आती, यह हमारे सामाजिक व्यवहार-सोच में भी आती है-ऐसे कथित विकास को खारिज करना होगा। स्वाधीन (सम्पादक सेतु) ने अपने व्यक्तव्य में डा0 रामविलास षर्मा के सांस्कृतिक सोच पर रोषनी डाली, उन्होने सगींत, स्थापत्य सरीखे क्षेत्रों में भी कलम चलाई । वह मानते थे कि भारत के विकास के सूत्र इसकी संास्कृतिक विरासत में मौजूद है।
बनारस हिन्दू विष्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की श्रद्धा सिंह ने कहा कि डा0 राम विलास षर्मा को सबसे सच्ची श्रद्धांजलि वही है जैसा उन्होने खुद कहा था कि उन्हे नही ,बल्कि उन समस्याओं पर विचार होना चाहिये जो उनकी चिन्ता के विशय थे। उन्होने भक्ति आदोंलन के साथ भारत में लोक जागरण और 1857 के जन उभार के साथ हिन्दी नव जागरण को रेखांकित किया। कवि लेखक सुरेष सलिल डा0 रामविलास षर्मा और सआदत हसन मण्टो की जन्म षताब्दी के संयुक्त आयोजन और वर्श भर चलने वाले कार्यक्रमों को सकारात्मक सांस्कृतिक बदलाव की प्रक्रिया के रुप में देखा। उन्होने अनेक उद्धरणों केे जरिये रामविलास जी के काव्य पक्ष और कविताओं की खासियतों को रेखाकिंत किया । पूर्व प्राचार्य व लेखक डा0 जीवन षुक्ल(कन्नोज) ने अपने अध्यक्षीय प्रतिवेदन में डा0 रामविलास षर्मा को हिन्दी साहित्य व आलोचना का ऐसा षिखर पुरुश बताया जिन्होनेें भारत की सांस्कृतिक जमीन व भारत की विकास यात्रा के सूत्रों को चुना। पूर्वाग्रहों व रूढि़योें से मुक्त रहकर ऋग्वेद और माक्र्सवाद दोनो से भारतीय समाज और संस्कृति के विकास की दिषा खोजी।
राजबहादुर सिंह चन्देल (षिक्षक विधायक,सदस्य विधान परिसद) ने अतिथि वक्ताओं द्वारा डाÛ षर्मा पर प्रेरक व्यक्तव्यों हेतु आभार जताया । उन्होनें डा0 रामविलास षर्मा के ऊॅचगाॅव सानी स्थित आवास को राश्ट्रीय विरासत स्थल घोशित करवाने और इसे प्रदेष सरकार के समक्ष उठाने का आष्वासन दिया।
डा0 महेष चन्द्र ‘विधु’ एवम् डा0 रष्मि दीक्षित ने अतिथि वक्ताओं के प्रति आभार जताते हुए डा0 षर्मा पर अपने विचार रखे । आयोजन समिति की ओर से अरविन्द कुमार ‘कमल’ ने धन्यवाद ज्ञापन किया। संचालन कुमार दिनेष प्रियमन ने किया। अतिथि वक्ताओं को स्मृति चिन्ह व षाल भेट कर सम्मानित किया।
कानपुर, लखनऊ षहर सहित उन्नाव के करीब डेढ़ दर्जन साहित्यिक, सास्ंकृतिक व सामाजिक सगंठनों की संयुक्त आयोजन समिति ने डा0 रामविलास षर्मा और सआदत हसन मण्टो के इस जन्म षताब्दी दौर में वर्श भर कार्यक्रमों आयोजनों की योजना बनाई है। आयोजन समिति ने ‘षताब्दी व्याख्यान समारोह’ में पारित प्रस्ताव- उॅचगाॅव सानी स्थित डा0 रामविलास जी का आवास राश्ट्रीय विरासत स्थल घोशित हो, इस प्रस्ताव पर व्यापक हस्ताक्षर अभियान जारी किया है। साथ ही समिति के घटक संगठनों के संयुक्त प्रयासों से ‘साहित्य लोक यात्रा’ तथा ‘षताब्दी व्याख्यान समारोह’ सहित अन्य संदर्भो को संकलित कर एक वृत्रचित्र तथा वृत्रिका पुस्तक संपादन का प्रस्ताव लिया है। आगे के दौर में समिति प्रकाषन के जरिये भी व्यापक तौर पर अपने सरोकारों को आयाम देगी।
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
[email protected]
[email protected]